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________________ संशोधन और परिवर्तन चोरों इसे धारण करके. अद्धा संभाल लेगा पिहियस्सव भशुख पृष्ठ लाइन ११९-१२ चारों १२२-१६ इसके कारण १३०-११,१३ अर्द ११४-१७ ज १४७-६ उसका उपाय बता देगा १४८-३३ पिहियास्सव १५२-१५, क्योंकि १५४-३. उस रास्तेपर......सकता १५६-३ अथवा १५६-१० यहाँ कहना चाहता हूँ १९४-९ एक पक्ष १६४-१. योग्य कहा गया १६५-२२ अनंत १६७-२२ बिना किसी अपवादके १७०-२२ अपने १७१-१ इसपरसे होकर जाना १०३-२२ सुना १७३-३१हीन....... १७४-१ विशुद्ध १७४-१३ उलटे सीधे १७७-२हम १७७-२ जानते १७७-२६ ऐसा १८५-६ आसक्तिका भाव १४-७ जिससे शंका न रहे १८४-१.3 उसी समय......समझता है १८५-१० कर रहा है १८५-२६ के प्रति १८५-२६ भूल जाओ १८६-३ तेरा १८६-४ साक्षी...दुःखी १८६-७ कारण उसकी निकटता नहीं हो सकती अन्यथा उसे दिखानेकी इच्छा है एक तरहसे मान्य रक्खा अंतर कुछको छोड़कर आपके द्वारा जाना । याद कर अपराधी हुई है निरपराधी इधर उधरके हमने जाना उस यह शंका भी नहीं रहती कि जीव बंध और मुक्तिसहित है। करता रहेगा भुला दे साक्षी और मध्यस्थ विचारणा अपनेसे जन्म सफल करनेका अवसर मिल गया है १८७-१९ अपनेमें । १८८-१९ आज मेरा जन्म सफल हो गया है १७२-७ कौनसी १९१-"मैं आपके साथ...चाहता ११४-७कारण १९६-३ जिसका कोई......ऐसे और मैं आपके साथ वैसा बर्ताव रखना नहीं चाहता नाते भयाचित
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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