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________________ .. श्रीमद् राजचन्द्र धर्मविषयक . जिसप्रकार दिनकरके विना दिन, शशिक विना शर्वरी, प्रजापतिके विना पुरकी प्रजा, सरसके विना कविता, सलिलके विना सरिता, भतीके विना भामिनी सारहीन दिखाई देते हैं, उसी तरह, रायचन्द्र वीर कहते हैं, कि सद्धर्मको धारण किये विना मनुष्य महान् कुकर्मी कहा जाता है ॥१॥ धर्म विना धन, धाम और धान्यको धूलके समान समझो, धर्म विना धरणीमें मनुष्य तिरस्कारको प्राप्त होता है, धर्म विना धीमंतोंकी धारणायें धोखा खाती हैं, धर्म विना धारण किया हुआ धैर्य धुवेके समान धुंधाता है, धर्म विना राजा लोग ठगाये जाते है (1), धर्म विना ध्यानीका ध्यान ढोंग समझा जाता है, इसलिये सुधर्मकी धवल धुरंधताको धारण करो धारण करो, प्रत्येक धाम धर्मसे धन्य धन्य माना जाता है ॥२॥ प्रेमपूर्वक अपने हाथसे मोह और मानके दूर करनेको, दुर्जनताके. नाश करनेको और जालके फन्दको तोड़नेको सकल सिद्धांतकी सहायतासे कुमतिके काटनेको, सुमतिके स्थापित करनेको और ममत्वके मापनेको; भली प्रकारसे महामोक्षके भोगनेको, जगदीशके जाननेको, और अजन्मताके प्राप्त करनेको; तथा अलौकिक, अनुपम सुखका अनुभव करनेको यथार्थ अध्यवसायसे धर्मको धारण करो॥३॥ धर्म विषे. कवित्त. दिनकर विना जेवो, दिननो देखाव दीसे, शशि विना जेवी रीते, शर्वरी सुहाय छे; प्रजापति विना जेवी, प्रजा पुरतणी पेखो, सुरस विनानी जेवी, कविता कहाय छे; सलिल विहीन जेवी, सरीतानी शोभा अने, भर्तार विहीन जेवी, भामिनी भळाय छे; वदे रायचंद वीर, सद्धर्मने धार्या विना, मानवी महान तेम, कुकर्मी कळाय छे ॥१॥ धर्म विना धन धाम, धान्य धुळधाणी धारो, धर्म विना धरणीमां, विकता धराय छ । धर्म विना धीमंतनी, धारणाओ धोखो धरे, धर्म विना धर्यु धैर्य, धुम्र यै धमाय छे; धर्म विना धराधर, धुताशे, न धामधुमे, धर्म विना ध्यानी ध्यान, ढोंग दंगे धाय छे धारो धारो धवळ, सुधर्मनी धुरंधरता, धन्य धन्य धाम धामे, धर्मयी धराय छे ॥ २ ॥ मोह मान मोडवाने, फेलपणुं फोडवाने, माळफेद तोडवाने, हेते निज हाथथी; कुमतिने कापवाने, सुमतिने स्थापवाने, ममत्वने मापवाने, सकल सिद्धांतथी महा मोक्ष माणवाने, जमदीश जाणवाने, अजन्मता आणवाने, वळी भली भातथी; अलौकिक अनुपम, मुख अनुभववाने, धर्म धारणाने धारो, खरेलरी सांतची ॥३॥
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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