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________________ ८३५ परिशिष्ट (१) धीरचन्द गांधी. वीरचंद गांधीका जन्म काठियावाड़में सन् १८६४ में हुआ था। इन्होंने आत्मारामजी सूरिके पास जैनतत्त्वज्ञानका अध्ययन किया और चिकागोमें सन् १८९३ में भरनेवाली विश्वधर्म परिषद्जैनधर्मके प्रतिनिधि होकर भाग लिया था । वीरचंद गांधीको उक्त परिषद्में जो सफलता मिली, उसकी अमेरिकन पत्रोंने भी प्रशंसा की थी । वीरचंद गांधीको वहाँ स्वर्णपदक भी मिले थे । अमेरिकासे लौटकर वीरचंद गांधीने इंगलैंडमें भी जैनधर्मपर व्याख्यान दिये । बादमें भी वीरचंद गांधी दो बार अमेरिका गये । इन्होंने अंग्रेजी भाषामें जैन फिलासफी आदि पुस्तकें भी लिखी हैं । वीरचन्द सन् १९०१ में स्वर्गस्थ हुए। वीरचंद गांधीको विलायत भेजनेका कुछ लोगोंने विरोध किया था। उसके संबंधमें राजचन्द्रजी लिखते हैं-"धर्मके बहाने अनार्य देशमें जाने अथवा सूत्र आदि भेजनेका निषेध करनेवाले-नगारा बजाकर निषेध करनेवाले–जहाँ अपने मान बड़ाईका सवाल आता है, वहाँ इसी धर्मको ठोकर मारकर, इसी धर्मपर पैर रखकर इसी निषेधका निषेध करते हैं, यह धर्मद्रोह ही है । उन्हें धर्मका महत्त्व तो केवल बहानेरूप है, और स्वार्थसंबंधी मान आदिका सवाल ही मुख्य सवाल है । वीरचंद गांधीको विलायत भेजने आदिके विषयमें ऐसा ही हुआ है।" वैराग्यशतक ( देखो भर्तृहरि ). व्यास-वेदव्यास___ व्यास महर्षिके नामसे प्रसिद्ध हैं । ये वेदविद्यामें पारंगत थे, इसलिये इन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है । इनका दूसरा नाम बादरायण भी है । ये ही कृष्णद्वैपायनके नामसे भी कहे जाते हैं। व्यासजीने चारों वेदोंका संग्रह करके उन्हें श्रेणीबद्ध किया था। व्यासजी बडे भारी ब्रह्मज्ञानी, इतिहासकार, सूत्रकार, भाष्यकार और स्मृतिकार माने जाते हैं। इनके जैमिनी वैशम्पायन आदि ३५००० शिष्य थे । महाभारत, भागवत, गीता, और वेदान्तसूत्र इन्हीं व्यास ऋषिके रचे हुए माने जाते हैं । व्यास ऋषिका नाम हिन्दुग्रन्थोंमें बहुत अधिक सन्मानके साथ लिया जाता है। शंकराचार्य शंकराचार्य अद्वैतमतके स्थापक महान् आचार्य थे। इनका जन्म केरल प्रदेशमें एक ब्राह्मणके घर हुआ था । शंकराचार्यने आठ वर्षकी अवस्थामें संन्यास धारण किया, और वेद आदि विद्याओंका अध्ययन किया । शंकराचार्यने बड़े बड़े शास्त्रार्थोंमें विजय प्राप्तकर सनातन वेदधर्मको चारों ओर फैलाया । शंकाराचार्यने अपने मतके प्रचारके लिये भारतवर्षकी चारों दिशाओंमें चार बड़े बड़े मठ स्थापित किये थे । शंकराचार्यने ब्रह्मसूत्र, दस उपनिषदोंपर भाष्य, गीताभाष्य आदि ग्रंथ लिखे हैं। इसके अतिरिक्त शंकराचार्यकी विवेकचूडामणि मोहमुद्गर आदि अनेक कृतियाँ भी बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रो० के० बी० पाठकके मतानुसार शंकराचार्य ईसवी सन् ८ वीं सदीमें हुए हैं । शंकराचार्य ३२ वर्षकी अवस्थामें समाधिस्थ हुए । शंकराचार्यजीको राजचन्द्रजीने महात्मा कहकर संबोधन किया है। शांतमुषारस शांतसुधारसके कर्चा विनयविजयजी, हीरविजय सूरिके शिष्य कीर्तिविजयके शिष्य थे। विनयविजयजी श्वेताम्बर आम्नायमें एक प्रतिभाशाली विद्वान् गिने जाते हैं। विनयविजयजीने भक्ति और
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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