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________________ ८३० श्रीमद् राजचन्द्र *मुक्तानन्द.. ये काठियावाडके रहनेवाले साधु थे। मुक्तानन्दजी सं० १८६४ में मौजूद थे। इन्होंने उद्धवगीता, धर्माख्यान, धर्मामृत तथा बहुतसे पद वगैरहकी रचना की है। राजचन्द्रजीने उद्धवगीताका एक पद उद्धृत किया है। मृगापुत्र ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, भावनाबोध पृ. ११२) मोहमुद्र मोहमुद्गर स्वामी शंकराचार्यका बनाया हुआ है । यह वैराग्यका अत्युत्तम ग्रन्थ है। इसमें मोहके स्वरूप और आत्मसाधनके बहुतसे उत्तम भेद बताये हैं । यह ग्रंथ वेदधर्मसभा बम्बईकी ओरसे गुजराती टीकासहित सन् १८९८ में प्रकाशित हुआ है । राजचन्द्रजीने इस ग्रंथमेंसे श्लोकका एक चरण उद्धृत किया है । इसका प्रथम श्लोक निम्न प्रकारसे है: मूढ जहीहि धनागमतृष्णां कुरु तनुबुद्धे मनसि वितृष्णां । यल्लभसे निजकर्मोपात्तं वित्तं तेन विनोदय चित्तम् ॥ -हे मूढ़ ! धनप्राप्तिकी तृष्णाको छोड़ । हे कम बुद्धिवाले ! मनको तृष्णारहित कर । तथा जो धन अपने कर्मानुसार मिले, उससे चित्तको प्रसन्न रख । मोक्षमार्गप्रकाश मोक्षमार्गप्रकाशके रचयिता टोडरमलजी हैं। पं० टोडरमलजी आधुनिक कालके दिगम्बर विद्वानोंमें बहुत अच्छे विद्वान् हो गये हैं । इनका जन्म संवत् १९७३ के लगभग जयपुरमें हुआ था। पं० टोडरमलजी जैनसिद्धांतके एक बहुत मार्मिक पंडित गिने जाते हैं । इन्होंने नेमिचन्द्र सिद्धांतचक्रवर्तीके प्रसिद्ध ग्रन्थ गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणासार और त्रिलोकसारपर विस्तृत हिन्दी वचनिका लिखी है । इसके अतिरिक्त इन्होंने आत्मानुशासन पुरुषार्थसिद्धिउपाय आदि ग्रंथोंपर भी विवेचन किया है । मोक्षमार्गप्रकाश टोडरमलजीका स्वतंत्र ग्रंथ है । यह अधूरा है। इसका शेषार्ध भाग ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीने लिखकर पूर्ण किया है । इस ग्रंथमें टोडरमलजीने जैनधर्मकी प्राचीनता, अन्य मतोंका खंडन, मोक्षमार्गका स्वरूप आदि विषयोंका बहुत सरल भाषामें वर्णन किया है। पं० टोडरमलजी दिगम्बर जैन विद्वानोंमें ऋषितुल्य समझे जाते हैं। टोडरमलजी १५-१६ वर्षकी अवस्थासे ही ग्रंथ-रचना करने लगे थे। पं० टोडरमलजीने वेताम्बरोंद्वारा मान्य वर्तमान जिनागमका निषेध किया है । इस विषयमें राजचन्द्रजी लिखते हैं-" मोक्षमार्गप्रकाशमें खेताम्बर सम्प्रदायद्वारा मान्य वर्तमान जिनागमका जो निषेध किया है, वह निषेध योग्य नहीं । यद्यपि वर्तमान आगममें अमुक स्थल अधिक संदेहास्पद हैं, परन्तु सत्पुरुषकी दृष्टिसे देखनेपर उसका निराकरण हो जाता है। इसलिये उपशम-दृष्टिसे उन आगमोंके अवलोकन करनेमें संशय करना उचित नहीं।" मोक्षमाला (देखो प्रस्तुत ग्रंथ पृ. १०-९६). यशोविजय। यशोविजय श्वेताम्बर परम्परामें अपने समयके एक महान् प्रतिभाशाली प्रखर विद्वान हो गये हैं। इनकी रचनायें संस्कृत, प्राकृत, गुजराती और हिन्दी चारों भाषाशोंमें मिलती हैं। तार्किकशिरोमणि
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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