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________________ ૮૨૨ श्रीमद् राजवन्द्र परमात्मप्रकाश परमात्मप्रकाश अध्यात्मका अपभ्रंशका एक उच्च कोटिका ग्रंथ है। इसके कर्त्ता योगीन्द्रदेव (योगीन्दु ) हैं। परमात्मप्रकाशपर ब्रह्मदेवने संस्कृत टीका लिखी है। योगीन्द्रदेवने अपने शिष्य भट्ट प्रभाकरको उपदेश करनेके लिये परमात्मप्रकाश लिखा था। ग्रंथमें सब मिलाकर २१४ दोहे हैं, जिनमें निश्चयनयका बहुत सुन्दर वर्णन है । इस ग्रंथका प्रो० ए० एन० उपाध्येने अभी हालमें सम्पादन किया है, जो रायचंद्रशास्त्रमालासे प्रकाशित हो रहा है। योगीन्द्रदेवकी दूसरी रचना योगसार है । यह भी इस लेखकद्वारा हिन्दी अनुवादसहित रायचन्द्रशास्त्रमालामें प्रकाशित हो रहा है। योगीन्द्रदेवका समय ईसवी सन् छठी शताब्दि माना जाता है । परमात्मप्रकाश दिगम्बर समाजमें बहुत आदरके साथ पढ़ा जाता है। परदेशी राजा परदेशी राजाकी कथा रायपसेणीयसूत्रमें आती है । यह राजा बहुत अधर्मी था, और इसके हृदयमें दयाका लवलेश भी न था । एकबार परदेशी राजाके मंत्री सारथीचित्रने श्रावस्ती नगरीमें केशीस्वामीके दर्शन किये । केशीस्वामीका उपदेश सुनकर सारथीचित्रको अत्यन्त प्रसन्नता हुई, और उन्होंने केशीस्वामीको अपनी नगरीमें पधारनेका आमंत्रण दिया। केशीस्वामी उस नगरीमें आये । सारथीचित्र परदेशी राजाको अपने साथ लेकर केशीस्वामीके पास गये । परदेशी राजाको केशीश्रमणका उपदेश लगा, और परदेशीने अनेक व्रत आदि धारण कर अपना जन्म सफल किया । परदेशी राजाका गुजरातीमें रास भी है, जिसे भीमसिंह माणेकने सन् १९०१ में प्रकाशित किया है । परीक्षित .. राजा परीक्षित अर्जुनके पौत्र और अभिमन्युके पुत्र थे । पांडव हिमालय जाते समय, परीक्षितको राजभार सौंप गये थे । परीक्षितने भारतवर्षका एकछत्र राज्य किया। अंतमें सॉपके डसनेसे इनकी मृत्यु हुई । शुकदेवजीने इन्हें भागवतकी कथा सात दिनमें सुनाई थी । इनकी कथा श्रीमद्भागवतमें विस्तारसे आती है। पर्वत ( देखो प्रस्तुत ग्रंथ, मोक्षमाला पाठ २३). पाण्डव-पाँच पाण्डवोंके १३ वर्षकी बनवासकी कथा जैन और जैनेतर ग्रंथोंमें बहुत प्रसिद्ध है। पाण्डवोंका विस्तृत वर्णन महाभारत आदि ग्रंथोंमें विस्तारसे आता है। पीराणा (देखो प्रस्तुत ग्रंथ पृ. ५५० फुटनोट ). पुद्गल परिव्राजक आलमिका नगरीमें पुद्गल नामका एक परिव्राजक रहता था । वह ऋग्वेद, यजुर्वेद और ब्राह्मणशास्त्रोंमें बहुत कुशल था । वह निरंतर छह-छहका तप करता, और ऊँचे हाथ रखकर आतापना लेता था। इससे पुद्गलको विभंगज्ञान उत्पन्न हुआ । इस विभंगज्ञानसे उसे ब्रह्मलोक स्वर्गमें रहनेवाले देवोंकी स्थितिका ज्ञान हो गया। उसने विचार किया- मुझे अतिशययुक्त ज्ञानदर्शन उत्पन्न हुआ है। देवलोकमें देवोंकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षकी है, और उत्कृष्ट दस सागरकी है। तत्पश्चात्
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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