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________________ परिशिष्ट ( १ ) ८१९ एक बहुत अच्छे अध्यात्मवेत्ता कवि हो गये हैं । इन्होंने श्वेताम्बर साहित्यके विशाल अध्ययनके साथ साथ गोम्मटसार आदि दिगम्बर प्रन्थोंका भी अच्छा अभ्यास किया था । देवचन्द्रजीने संस्कृत, प्राकृत, ब्रज और गुजराती भाषामें अनेक कृतियां बनाई हैं । इन्होंने दस वर्षकी अवस्था में दीक्षा ले ली थी, और जीवनपर्यंत ब्रह्मचारी रहकर साहित्य सेवा की । देवचन्द्रजीकी रचनाओंमें द्रव्यप्रकाश, नयचक्र, ज्ञानमंजरीटीका, विचाररत्नसार, अध्यात्मगीता, चतुर्विंशतिजिनस्तवन आदि ग्रन्थ मुख्य हैं । राजचन्द्रजीने अध्यात्मगीता और चतुर्विंशतिजिनस्तवनके पद्य उद्धृत किये हैं । देवचन्द्रसूरि ( देखो हेमचन्द्र ). देवागमस्तोत्र ( देखो समंतभद्र ). प्रहारी (देखो प्रस्तुत ग्रंथ, भावनाबोध पृ. ११९-२० ). घनाभद्र-शालिभद्र - धनाभद्र शालिभद्रकी कथा श्वेताम्बर साहित्यमें बहुत प्रसिद्ध है । यह कथा सूत्रग्रंथोंमें भी आती है । सं० १८३३ में जिनकीर्त्तिसूरिने संस्कृत धन्यचरित्रमें यह कथा विस्तारसे दी है । इस संस्कृतचरित्रके ऊपरसे पं० जिनविजय महाराजने सूरतमें रहकर धन्नाशालिभद्रका रास लिखा है । यह रास चार ढालमें है । चौथी ढालमें धनाभद्र और शालिभद्रके संयम ग्रहण करनेका उल्लेख है । धनाभद्र और शालिभद्र मोक्षगामी जीव थे । उक्त रासको भीमसिंह माणेकने सन् १९०७ में प्रकाशित किया है । *धरमशी ( धरमसिंह ) मुनि - धरमशी मुनिका जन्म जामनगरमें हुआ था । इनके गुरुका नाम शिवजी ऋषि था । ये लोंकागच्छका शिथिलाचार देखकर उससे अलग हो गये थे, और संवत् १६८५ में उन्होंने दरियापुरीसम्प्रदायकी स्थापना की थी। ये अवधान भी करते थे । धरमशी मुनिने २७ सूत्रोंपर 'टब्बा ' की रचना की हैं । इन्होंने और भी ग्रन्थ लिखे हैं । इनका विशेष परिचय " जैनधर्मनो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास " पुस्तकमें है । यह पुस्तक स्थानकवासी जैन कार्यालय अहमदाबादसे प्रकाशित हुई है । धर्मविन्दु ( देखो हरिभद्र ). 1 धर्मसंग्रहणी ( देखो हरिभद्र ). नंदिसूत्र ( आगमग्रन्थ ) - इसका राजचंद्रजीने एक स्थलपर कवितामें उल्लेख किया है । नमिराजर्षि (देखो प्रस्तुत ग्रंथ, भावनाबोध पृ. १०३-६ ). नरसिंह (सी) मेहता - नरसिंह मेहता गुजरातके उच्च कोटिके भक्त कवि माने जाते हैं । इनका जन्म जूनागढ़में हुआ था । इनका जन्मकाल संवत् १५५० से १६५० के भीतर माना जाता है। इनकी हारलीला, सुरतसंग्राम, रासलीला आदि रचनायें गुजराती साहित्यमें बहुत प्रसिद्ध हैं। नरसिंह मेहता कृष्णके अत्यंत भक्त थे । उनकी कविता सरल, कोमल और भक्तिभावसे परिपूर्ण है । लोकवार्त्ता है कि नरसिंह मेहताको प्रभु * यह सूचना मुझे मेरे मित्र श्रीयुत दलसुखभाई मालवणीयाने दी है। —लेखक.
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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