SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 906
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भीमद् राजचन्द्र ऊपर कई दिगम्बर विद्वानोंकी टीकायें हैं । नेमिचन्द्रका समय ईसाकी ११ वीं शताब्दि माना जाता है । राजचन्द्रजीने गोम्मटसारके पठन करनेका मुमुक्षुओंको अनुरोध किया है। गोशाल जैनशास्त्रोंके अनुसार मंखलिपुत्र गोशाल महावीर भगवान्के शिष्य थे । किसी बातको लेकर गोशाल और महावीरमें मतभेद हो गया। गोशालने महावीरके संघको छोड दिया और उन्होंने अपना निजी संघ स्थापित किया । गोशाल अपनेको 'जिन' कहा करते थे। एक बार महावीरके किसी शिष्यने महावीर भगवानसे कहा कि गोशाल अपनेको जिन कहते हैं। महावीरने कहा गोशाल जिन नहीं है। जब इस बातकी गोशालको खबर लगी तब वे बहुत क्रोधित हुए, और उन्होंने महावीरको अत्यन्त आक्रोशपूर्ण वचन कहे। सर्वानुभूति और सुनक्षत्र नामके मुनियोंने गोशालकको बहुत समझाया, पर उन्होंने उन दोनोंको अपनी तेजोलेश्यासे जला डाला । गोशालने भगवान् महावीरके ऊपर भी अपनी तेजोलेश्याका प्रयोग किया था । गोशालका विस्तृत वर्णन भगवतीके १५ वें शतकके १५ वें उद्देशमें दिया है। गौतम (ऋषि) गौतम ऋषि न्यायदर्शनके आधप्रणेता माने जाते हैं। न्यायसूत्र इन्हींके बनाये हुए हैं । न्यायसूत्रोंकी रचनाकालके विषयमें विद्वानोंमें बहुत मतभेद है । कुछ लोग इन्हें ईसवी सन्के पूर्वकी रचना मानते हैं, और कुछ लोग न्यायसूत्रोंको ईसवी सन्के बादका लिखा हुआ मानते हैं। गौतम गणधर-गौतम इन्द्रभूति महावीरके ११ शिष्यों से मुख्य शिष्य थे। ये आदिमें ब्राह्मण थे। इनमें गौतम इन्द्रभूति और सुधर्माको छोड़कर बाकीके गणधरोंने महावीर भगवान्की मौजूदगीमें ही निर्वाण पाया था । जैनशास्त्रोंमें गौतम गणधरका नाम जगह जगह आता है। गौतम गणधरके शिष्योंको केवलज्ञानकी प्राप्ति हो गई थी; परन्तु स्वयं गौतमको, भगवान् महावीरके ऊपर मोह रहनेके कारण केवलज्ञान नहीं हुआ—यह कथन मोक्षमालामें आता है। चारित्रसागर यह कोई पदबद्ध ग्रन्थ मालूम होता है । इसका उल्लेख पत्रांक १३४ में है। चिदानन्द चिदानन्दजीका पूर्व नाम कपरविजय था। ये संवेगी साधु थे। इनके विषयमें बहुतसी किंवद-. न्तियाँ सुनी जाती हैं। चिदानन्दजी कोई बड़े विद्वान् भाषाशास्त्री न थे, किन्तु ये एक आत्मानुभवी अध्यात्मी पुरुष थे। चिदानन्दजीने मिश्र हिन्दी भाषामें अध्यात्मकृतियाँ बनाई हैं। चिदानन्दजीने स्वरोदयज्ञानकी भी रचना की है । इसकी भाषा हिन्दीमिश्रित गुजराती है। इस प्रथमें छंदकी कोई विशेष टीपटाप नहीं है । शरीरमें जो पाँच तरहकी पवन होती है, यह पवन किस तरह, कब निकलती है, और किसके कहाँसे निकलनेसे क्या फल होता है, इत्यादि स्वरसंबंधी बातोंका स्वरोदयज्ञानमें वर्णन है । श्रीमद् राजचन्द्रने स्वरोदयज्ञानका विवेचन लिखना आरंभ किया था । उसका जो भाग मिलता है वह प्रस्तुत प्रथमें अंक ९ के नीचे दिया गया है। सुनते हैं कि चिदानन्दजी
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy