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________________ ७५५,७५६,७५७,७५८] विविध पत्र आदि संग्रह-३१वाँ वर्ष ७२३ ७५५ ॐ नमः केवलज्ञानएक ज्ञान. वह स्वतत्त्वभूत है. सर्व अन्य भावोंके संसर्गसे रहित एकांत शुद्धज्ञान. | निरावरण है. सर्व द्रव्य क्षेत्र काल भावका सब प्रकारसे एक भेदरहित है. समयमें ज्ञान. उस केवलज्ञानका हम ध्यान करते हैं. निर्विकल्प है. वह निजस्वभावरूप है. सर्वभावका उत्कृष्ट प्रकाशक है. ७५६ मैं केवलज्ञानस्वरूप हूँ-यह सम्यक् प्रतीत होता है । वैसे होनेके हेतु सुप्रतीत हैं। सर्व इन्द्रियोंका संयम कर, सर्व परद्रव्योंसे निजस्वरूपको व्यावृत्त कर, योगको अचल कर, उपयोगसे उपयोगकी एकता करनेसे केवलज्ञान होता है । ७५७ आकाशवाणी. तप करो। तप करो । शुद्ध चैतन्यका ध्यान करो । शुद्ध चैतन्यका ध्यान करो। ७५८ मैं एक हूँ, असंग हूँ, सर्व परभावोंसे मुक्त हूँ। मैं असंख्यात प्रदेशात्मक निज अवगाहना प्रमाण हूँ। मैं अजन्म, अजर, अमर, शाश्वत हूँ। मैं स्वपर्याय-परिणामी समयात्मक हूँ। मैं शुद्ध चैतन्यस्वरूप मात्र निर्विकल्प द्रष्टा हूँ। वरहित स्वरूपसे विभाव चैतन्य परभाव AVM प्रताप
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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