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________________ ७५३ व्याख्यानमार] विविध पत्र मादि संग्रह-३१वाँ वर्ष संभव हो सकता है । कंदमूल आदिमें अनंतपना संभव है । दूसरी हरियालीमें अनंतपना संभव नहीं, परन्तु कंदमूलमें अनंतपना घटता है । तथा कंदमूलके यदि थोड़ेसे भागको भी काटकर लगाया जाय तो वह उग आता है, इस कारण भी उसमें जीवोंका आधिक्य रहता है। फिर भी यदि प्रतीति न होती हो तो आत्मानुभव करना चाहिये । आत्मानुभव होनेसे प्रतीति होती है । जबतक आत्मानुभव नहीं होता, तबतक उस प्रतीतिका होना मुश्किल है। इसलिये यदि उसकी प्रतीति करना हो तो प्रथम आत्माका अनुभवी होना चाहिये। ८५. जबतक ज्ञानावरणीयका क्षयोपशम नहीं हुआ, तबतक सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेकी इच्छा रंखनेवालेको उस बातकी प्रतीति रखकर आज्ञानुसार ही चलना चाहिये । ८६. जीवमें संकोच-विस्तारकी शक्तिरूप गुण रहता है, इस कारण वह सूक्ष्म स्थूल शरीरमें देहके प्रमाण स्थिति करता है । इसी कारण जहाँ थोड़े अवकाशमें भी वह विशेषरूपसे संकोचपना कर सकता है, वहाँ जीव संकोचपूर्वक रहता है। ८७. ज्यों ज्यों जीव कर्म-पुद्गलोंको अधिक ग्रहण करता है, त्यों त्यों वह अधिक निबिड़ होकर अनेक देहोंमें रहता है। ८८. पदार्थोंमें अचिन्त्य शक्ति है। कोई भी पदार्थ अपने धर्मका त्याग नहीं करता। एक एक जीवमें परमाणुरूपसे ग्रहण किये गये अनंत कर्म हैं। तथा ऐसे अनंत जीव, जिनकी साथ अनंतानंत कर्मरूपी परमाणु संबद्ध हैं, निगोदके आश्रयसे थोडेसे अवकाशमें रहते हैं-यह बात भी शंका करने योग्य नहीं । साधारण गिनतीके अनुसार तो एक परमाणु एक आकाश-प्रदेशका अवगाहन करता है, परन्तु उसमें अचिंत्य सामर्थ्य है । उस सामर्थ्य -स्वभावके कारण थोडेसे आकाशमें भी अनंत परमाणु रहते हैं । जैसे किसी दर्पणके सन्मुख यदि उस दर्पणसे किसी बहुत बड़ी वस्तुको रक्खा जाय, तो भी उसका उतना आकार उस दर्पणमें समा जाता है; तथा जैसे यद्यपि आँख एक छोटीसी वस्तु है, फिर भी उस छोटीसी वस्तुमें सूर्य चन्द्र आदि बड़े बड़े पदार्थोंका स्वरूप दिखाई देता है। इसी तरह आकाश यद्यपि एक बड़ा विशाल क्षेत्र है, फिर भी वह आँखमें दृश्यरूपसे समा जाता है; तथा आँख जैसी छोटीसी वस्तु बड़े बड़े बहुतसे घरोंको देख सकती है। यदि थोड़ेसे आकाशमें अचिंत्य सामर्थ्यके कारण अनंत परमाणु न समा सकते हों, तो फिर आँखसे उसके परिमाण जितनी ही वस्तु दिखाई देनी चाहिये, उसमें उससे अधिक मोटा भाग न दिखाई पड़ना चाहिये । अथवा दर्पणमें भी बहुतसी घर आदि बड़ी बड़ी वस्तुओंका प्रतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । इस कारण परमाणुकी अचिंत्य सामर्थ्य है, और इस कारण थोडेसे आकाशमें भी अनंत परमाणु समा सकते हैं। ८९. इस तरह परमाणु आदि द्रव्योंका जो सूक्ष्मभावसे निरूपण किया गया है, वह ययपि परभावका विवेचन है, फिर भी वह सकारण है और वह हेतुपूर्वक ही किया गया है। ९०. चित्तके स्थिर करनेके लिये, अथवा वृत्तिको बाहर न जाने देकर उसे अंतरंगमें ले जानेके लिये, परद्रव्यके स्वरूपका समझना उपयोगी है। ९१. परद्रव्यके स्वरूपका विचार करनेसे वृति बाहर न जाकर अंतरंगमें ही रहती है, और
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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