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________________ राजचन्द्र और उनका संक्षिप्त परिचय । अव्यक्तरूपसे मौजूद रहती है। क्योंकि हम वास्तवमें स्वाधीन है, अमर है, सर्वशक्तिमान है, परिमितसे पृथक् है, सत् और असत्के भेदसे पर हैं, तथा आत्मा और परमात्मासे अभिन्न है।' बौद्ध, जैन, ईसाई, मुसलमान आदि सभी धर्मोके ग्रन्थकारोंने इस दशाका भिन्न भिन्न रूपमें वर्णन किया है । निस्सन्देह राजचन्द्र आत्मविकासकी उच्च दशाको पहुँचे हुए थे; और जान पड़ता है इसी दशाको उन्होंने 'शुद्धसमकित' के नामसे उल्लेख किया है। वे लिखते हैं: ओगणीसे ने सुडतालीसे समकित शुद्ध प्रकाश्यु रे । श्रुत अनुभव वधती दशा निजस्वरूप अवमास्यु रे ॥ इस पद्यमें उन्होंने संवत् १९४७ में, अपनी २४ वर्षकी अवस्थामें श्रुत-अनुभव, बढ़ती हुई दशा, और निजस्वरूपके भास होनेका स्पष्ट उल्लेख किया है। राजचन्द्रजीका लेखसंग्रह श्रीमद् राजचन्द्रने अपने ३३ वर्षके छोटेसे जीवनमें बहुत कुछ बाँचा और बहुत ही कुछ लिखा। यद्यपि राजचन्द्रजीके लेखों, पत्रों आदिका बहुत कुछ संग्रह ' श्रीमद् राजचन्द्र 'नामक ग्रंथमें आ गया है। परन्तु यहाँ यह बता देना आवश्यक है कि अभी राजचन्द्रजीके पत्रों आदिका बहतसा भाग और भी मौजद है। और इस भागमें कुछ भाग तो ऐसा है जिससे राजचन्द्रजीके विचारों के संबंध बहुतसी नई बातोपर प्रकाश पड़ता है, और तत्संबंधी बहुतसी गुत्थियाँ सुलझती हैं। राजचन्द्रजीके लेखोंको सामान्यः तया तीन विभागों में विभक्त किया जा सकता है। प्रथम भागमें राजचन्द्रजीके विविध पत्रों का संग्रह आता है। जिन्हें राजचन्द्रजीने भिन्न भिन्न अवसरोपर मुमुक्षुओकी तत्त्वज्ञानकी पिपासा शान्त करनेके लिये लिखा था। इन पत्रोंमसे कुछ थोडेसे खास खास पत्र पहिले उद्धृत किये जा चुके हैं। राजचन्द्रजीके पत्रोंसेखासकर जिसमें गांधीजीने राजचन्द्रजीसे सत्ताइस प्रश्नोंका उत्तर माँगा है-गांधीजीको बहुत शांति मिली थी, और वे हिन्दुधर्ममें स्थिर रह सके थे, यह बात बहुतसे लोग जानते हैं। राजचन्द्रजीके लेखोंका दूसरा भाग निजसंबंधी है । इन पत्रोंके पढ़नेसे मालूम होता है कि राजचन्द्र अपना सतत आत्मनिरीक्षण (Self analysis) करने में कितने सतर्क रहते थे। कहीं कहीं तो उनका आत्मनिरीक्षण इतना सष्ट और सूक्ष्म होता था कि उसके पढ़नेसे सामान्य लोगोंको उनके विषयमें भ्रम हो जानेकी संभावना थी। इसी कारण राजचन्द्रजीको अपना अंत:करण खोलकर रखनेके लिये कोई योग्य स्थल नहीं मिलता था। बहुत करके राजचन्द्रजीने इन पत्रोंको अपने महान् उपकारक सायला निवासी श्रीयुत सौभागभाईको ही लिखा था । इस प्रकारका साहित्य अपनी भाषाओं में बहुत ही कम है। इसमें सन्देह नहीं ये समस्त पत्र अत्यंत उपयोगी है, और राजचन्द्रजीको समझनेके लिये पारदर्शकका काम करते हैं। अनेक स्थलोपर राजचन्द्रजीने अपनी निजकी दशाका पद्यमें भी वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त इस संबंध राजचन्द्रजीकी जो 'प्राइवेट डायरी' (नौधपोथी) हैं जिन्हें राजचन्द्रजी व्यावहारिक कामकाजसे अवकाश मिलते ही लिखने बैठ जाते थे—बहुत महत्त्वपूर्ण है। राजचन्द्रजीको जो समय समयपर नाना तरहकी १ विवेकानन्द-राजयोग लन्डन १८९६. २ देखो अमेरिकाके प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्सकी The Varieties of Religious Experiences नामक पुस्तकमे Mysticism नामक प्रकरण; तथा रिचर्ड मौरिस म्युककी Cosmic Consciousness १९०५. इस भागमॆसे दो महत्वपूर्ण पत्रोंके अंश पहिले उब्त किये जा चुके हैं। इन पत्रोंका कुछ भाग मुझे दो मुमुक्षाओंकी कृपासे पड़नेको मिला । एक पत्रमें दस या बारह मुद्दोंमें गजचन्द्रजीने अपनी जैनतत्वज्ञानसंबंधी आलोचनाका निचोड़ लिखा है। मुझे इस पत्रसे राजचन्द्रजीका दधिविन्दु समझने में बहुत मदद मिली है। इसके लिये उक मुमुक्षुओका में बहुत कृतज्ञ हूँ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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