SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 688
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .भीमद् राजचन्द्र वळी जो आतमा होय तो, जणाय ते नहीं केम। जणाय जो ते होय तो, घटपट आदि जेम ॥ ४७॥ और यदि आत्मा हो तो वह मालूम क्यों नहीं होती ! जैसे घट पट आदि पदार्थ मौजूद हैं, और वे मालूम होते हैं, उसी तरह यदि आत्मा हो तो वह क्यों मालूम नहीं होती ! माटे छे नहीं आतमा, मिथ्या मोक्षउपाय । . . ए अंतर शंकातणो, समजावो सदुपाय ॥४८॥ __ अतएव आत्मा नहीं है और आत्मा नहीं, इसलिये उसके मोक्षके लिये उपाय करना भी व्यर्थ है-इस मेरी अंतरकी शंकाका कुछ भी सदुपाय हो तो कृपा करके मुझे समझाइये-अर्थात् इसका कुछ समाधान हो तो कहिये। समाधान-सद्गुरु उवाचसद्गुरु समाधान करते हैं कि आत्माका अस्तित्व है: भास्यो देहाध्यासयी, आत्मा देहसमान । पण ते बो भित्र छ, प्रगटलक्षणे भान ॥ ४९॥ देहाध्याससे अर्थात् अनादिकालके अज्ञानके कारण देहका परिचय हो रहा है, इस कारण तुझे आत्मा देह जैसी अर्थात् आत्मा देह ही भासित होती है । परन्तु आत्मा और देह दोनों भिन्न भिन्न हैं, क्योंकि दोनों ही भिन्न भिन्न लक्षणपूर्वक प्रगट देखनेमें आते हैं। भास्यो देहाध्यासयी, आत्मा देहसमान । पण ते बने भिम छ, जेम असि ने म्यान ॥५०॥ · अनादिकालके अज्ञानके कारण देहके परिचयसे देह ही आत्मा भासित हुई है, अथवा देहके समान ही आत्मा भासित हुई है । परन्तु जिस तरह तलवार और म्यान दोनों एक म्यानरूप मालम होते हैं फिर भी दोनों भिन्न भिन्न हैं, उसी तरह आत्मा और देह दोनों भिन्न भिन्न हैं। जे द्रष्टा छे दृष्टिनो, जे जाणे छे रूप । अबाध्य अनुभव जे रहे, ते छ जीवस्वरूप ॥५१॥ वह आत्मा, दृष्टि अर्थात् आँखसे कैसे दिखाई दे सकती है ! क्योंकि उल्टी आत्मा ही आँखको देखनेवाली है। जो स्थूल सूक्ष्म आदिके स्वरूपको जानता है और सबमें किसी न किसी प्रकारकी बाधा. आती है परन्तु जिसमें किसी भी प्रकारकी बाधा नहीं आ सकती, ऐसा जो अनुभव है, वही जीवका स्वरूप है। . छे इन्द्रिय प्रत्येकने, निज निज विषयर्नु मान । - पाँच इन्द्रिना विषय, पण आत्माने भान ॥ ५२ ॥ ___ जो कर्णेन्द्रियसे सुना जाता है उसे कर्णेन्द्रिय जानती है, उसे चक्षु इन्द्रिय नहीं जानती; और जो चक्षु इन्द्रियसे देखा जाता है उसे कर्णेन्द्रिय नहीं जानती । अर्थात् सब इन्द्रियोंको अपने अपने विषयका ही ज्ञान होता है, दूसरी इन्द्रियों के विषयका ज्ञान नहीं होता, और आत्माको तो पाँचों इन्द्रियों के
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy