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________________ ६६.] मात्मसिद्धि ५९५ प्रत्यक्ष सद्गुरुयोगयी, स्वछंद ते रोकाय । अन्य उपाय कर्या थकी, पाये घमणो थाय ॥ १६ ॥ प्रत्यक्ष सद्गुरुके योगसे वह स्वच्छंद रुक जाता है; नहीं तो अपनी इच्छासे दूसरे अनेक उपाय करनेपर भी प्रायः करके वह दुगुना ही होता है। स्वच्छंद मत आग्रह तजी, वर्ते सद्गुरुलक्ष । समकित तेने भाखियुं, कारण गणी प्रत्यक्ष ॥ १७ ॥ स्वछंद तथा अपने मतके आग्रहको छोड़कर जो सद्गुरुके लक्षसे चलना है, उसे समकितका प्रत्यक्ष कारण समझकर वीतरागने ' समकित' कहा है। मानादिक शत्रु महा, निजछंदे न मराय । जातां सद्धरुशरणमा, अल्प प्रयासे जाय ॥ १८॥ मान और पूजा-सत्कार आदिका लोभ इत्यादि जो महाशत्रु हैं, वे अपनी चतुराईसे चलनेसे नाश नहीं होते, और सद्गुरुकी शरणमें जानेसे वे थोडेसे प्रयत्नसे ही नाश हो जाते हैं। जे सद्गुरुउपदेशयी, पाम्यो केवळज्ञान । गुरु रखा छअस्थ पण, विनय करे भगवान ॥ १९॥ जिस सद्गरुके उपदेशसे जिसने केवलज्ञानको प्राप्त किया हो, और वह सद्गुरु अभी छपस्थ ही हो; तो भी जिसने केवलज्ञान पा लिया है, ऐसे केवली भगवान् भी अपने छप्रस्थ सद्गुरुका वैयावृत्य करते हैं। एवो मार्ग विनय तणो, भाख्यो श्रीवीतराग । मूळ हेतु ए मार्गनो, समझे कोई सुभाग्य ॥ २० ॥ इस तरह श्रीजिनभगवान्ने विनयके मार्गका उपदेश दिया है। इस मार्गका जो मूल हेतु हैअर्थात् उससे आत्माका क्या उपकार होता है-उसे कोई ही भाग्यशाली अर्थात् सुलभ-बोधी अथवा आराधक जीव ही समझ पाता है। असद्गुरु ए विनयनो, लाभ कहे जो काइ। महामोहिनी कमेथी, बूडे भवजल मांहि ॥ २१॥ यह जो विनय-मार्ग कहा है, उसे शिष्य आदिसे करानेकी इच्छासे, जो कोई भी असद्गुरु अपनेमें सहरुकी स्थापना करता है, वह महामोहनीय कर्मका उपार्जन कर भवसमुद्रमें डूबता है। होय मुमुक्षु जीव ते, समजे एह विचार ।। होय मतार्थी जीव ते, अवळो ले निर्धार ॥ २२॥ जो मोक्षार्थी जीव होता है वह तो इस विनय-मार्ग आदिके विचारको समझ लेता है, किन्तु जो मतार्थी होता है वह उसका उल्टा ही निश्चय करता है। अर्थात् या तो वह स्वयं उस विनयको किसी शिष्य आदिसे कराता है, अथवा असहरुमें सद्गुरुकी भ्रांति रख स्वयं इस विनय-मार्गका उपयोग करता है।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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