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________________ १] उपदेश-छाया . है और उस प्रकारके कर्मसे बाँधे हुए दोनों कुगतिको प्राप्त होते हैं । ऐसी मुश्किल जैन लोगोंमें विशेष हो गई है। नय आत्माके समझनेके लिये कहे हैं, परन्तु जीव तो नयवादमें ही गुथ जाते हैं । आत्माको समझते हुए नयमें गुंथ जानेसे वह प्रयोग उल्टा ही हो गया। समकितदृष्टि जीवको 'केवलज्ञान' कहा जाता है। उसे वर्तमानमें भान हुआ है, इसलिये 'देश-केवलज्ञान' कहा जाता है। बाकी तो आत्माका भान होना ही केवलज्ञान है । वह इस तरह कहा जाता है:-समकितदृष्टिको जब आत्माका भान हो तब उसे केवलज्ञानका भान प्रगट हुआ, और जब उसका भान प्रगट हो गया, तो केवलज्ञान अवश्य होना चाहिये, इसलिये इस अपेक्षासे समकितदृष्टिको केवलज्ञान कहा है। सम्यक्त्व हुआ अर्थात् जमीन जोतकर बीज बो दिया; वृक्ष हुआ, फल आये, फल थोड़े ही खाये, और खाते खाते आयु पूर्ण हो गई; तो फिर अब दूसरे भवमें फल खावेंगे । इसलिये केवलज्ञान' इस कालमें नहीं-नहीं, ऐसा विपरीत मान नहीं लेना, और नहीं कहना। सम्यक्त्व प्राप्त होनेसे अनंतभव दूर होकर एक भव बाकी रह जाता है, इसलिये सम्यक्त्व उत्कृष्ट है । आत्मामें केवलज्ञान ह, परन्तु आवरण दूर होनेपर केवलज्ञान होता है । इस कालमें सम्पूर्ण आवरण दूर नहीं होता-एक भव बाकी रह जाता है। अर्थात् जितना केवलज्ञानावरणीय दूर हो, उतना ही केवलज्ञान होता है । समकित आनेपर, भीतरमें-अंतरमेंदशा बदल जाती है; केवलज्ञानका बीज प्रगट होता है। सद्गुरु बिना मार्ग नहीं, ऐसा महान् पुरुषोंने कहा है । यह उपदेश बिना कारण नहीं किया । ____समकिती अर्थात् मिथ्यात्वसे मुक्त; केवलज्ञानी अर्थात् चारित्रावरणसे सम्पूर्णरूपसे मुक्त; और सिद्ध अर्थात् देह आदिसे सम्पूर्णरूपसे मुक्त । . प्रश्न:-कर्म किस तरह कम होते हैं ! उत्तरः-क्रोध न करे, मान न करे, माया न करे, लोभ न करे—उससे कर्म कम होते हैं । बाह्य क्रिया करूँगा तो मनुष्य जन्म मिलेगा, और किसी दिन सत्पुरुषका संयोग होगा। प्रश्नः-व्रत-नियम करने चाहिये या नहीं ! उत्तरः-व्रत-नियम करने चाहिये । परन्तु उसकी साथ झगड़ा, कलह, लड़के बच्चे, और घरमें मारामारी नहीं करना चाहिये । ऊँची दशा पानेके लिये ही व्रत-नियम करने चाहिये। सच्चे-झूठेकी परीक्षा करनेके ऊपर एक सच्चे भक्तका दृष्टान्तः एक राजा बहुत भक्तिवाला था। वह भक्तोंकी बहुत सेवा किया करता था । बहुतसे भक्तोंको अन्न-वन आदिसे पोषण करनेके कारण बहुतसे भक्त इकडे हो गये । प्रधानने सोचा कि राजा विचारा भोला है, और भक्त लोग ठग हैं; इसलिये इस बातकी राजाको परीक्षा करानी चाहिय । परन्तु इस समय तो राजाको इनपर बहुत प्रेम है, इसलिये वह मानेगा नहीं, इसलिये किसी दूसरे अवसरपर बात काँगा । ऐसा विचार कुछ समय ठहरकर किसी अवसरके मिलनेपर उसने राजासे कहा- आप. बहुत समयसे सब भक्तोंकी एक-सी सेवा-चाकरी करते हैं, परन्तु उनमें कोई बड़ा होगा और कोई छोटा होगा। इसलिये सबकी परीक्षा करके ही भक्ति करना चाहिये ।' राजाने इस बातको स्वीकार किया और पूछा कि तो फिर क्या करमा चाहिये । राजाकी आज्ञा लेकर प्रधानने जो दो हज़ारभक्त थे उन सबको
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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