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________________ ६४३] उपदेश-छाया ५३९ . प्रश्न:-आत्मा एक है अथवा अनेक ! : उत्तरः-यदि आत्मा एक ही हो तो पूर्वमें जो रामचन्द्रजी मुक्त हो गये हैं, उससे सबकी मुक्ति हो जानी चाहिये । अर्थात् एककी मुक्ति हुई हो तो सबकी मुक्ति हो जानी चाहिये; और तो फिर दूसरोंको सत्शास्त्र सद्गुरु आदि साधनोंकी भी आवश्यकता नहीं। प्रश्नः-मुक्ति होनेके पश्चात्, क्या जीव एकाकार हो जाता है ! उत्तरः-यदि मुक्त होनेके बाद जीव एकाकार हो जाता हो तो स्वानुभव आनन्दका अनुभव करे नहीं । कोई पुरुष यहाँ आकर बैठा, और वह विदेह-मुक्त हो गया। बादमें दूसरा पुरुष यहाँ आकर बैठा, वह भी मुक्त हो गया। परन्तु इस तरह तीसरे चौथे सबके सब मुक्त हो नहीं जाते । आत्मा 'एक है, उसका आशय यह है कि सब आत्मायें वस्तुरूपसे तो समान हैं, परन्तु स्वतंत्र हैं, स्वानुभव करती हैं । इस कारण आत्मा भिन्न भिन्न हैं । "आत्मा एक है, इसलिये तुझे कोई दूसरी भ्रांति रखनेकी जरूरत नहीं ! जगत् कुछ चीज़ ही नहीं, ऐसे भ्रन्तिहित भावसे वर्तन करनेसे मुक्ति है"ऐसा जो कहता है, उसे विचारना चाहिये कि तब तो एककी मुक्तिसे जरूर सबकी मुक्ति हो जानी चाहिये । परन्तु ऐसा होता नहीं, इसलिये आत्मा भिन्न भिन्न हैं । जगत्की भ्रांति दूर हो गई, इससे ऐसा समझना नहीं कि चन्द्र सूर्य आदि ऊपरसे नीचे गिर पड़ते हैं । इसका आशय यही है कि आत्माकी विषयसे भ्रान्ति दूर हो गई है । रूदिसे कोई कल्याण नहीं । आत्माके शुद्ध विचारको प्राप्त किये बिना कल्याण होता नहीं । . माया-कपटसे झूठ बोलनेमें बहुत पाप है । वह पाप दो प्रकारका है । मान और धन प्राप्त करनेके लिये झूठ बोले तो उसमें बहुत पाप है । आजीविकाके लिये झूठ बोलना पड़ा हो, और पश्चात्ताप करे तो उसे पहिलेकी अपेक्षा कुछ कम पाप लगता है। बाप स्वयं पचास वरसका हो, और उसका बीस बरसका पुत्र मर जाय तो वह बाप उसके पास जो आभूषण होते हैं उन्हें निकाल लेता है ! पुत्रके देहान्त-क्षणमें जो वैराग्य था, वह स्मशान वैराग्य था! ____ भगवान्ने किसी भी पदार्थको दूसरेको देनेकी मुनिको आज्ञा दी नहीं। देहको धर्मका साधन मानकर उसे निबाहनेके लिये जो कुछ आज्ञा दी है, उतनी ही आज्ञा दी है; बाकी दूसरेको कुछ भी देनेकी आज्ञा दी नहीं। आज्ञा दी होती तो परिग्रहकी वृद्धि ही होती, और उससे अनुक्रमसे अन्न पान आदि लाकर कुटुम्बका अथवा दूसरोंका पोषण करके, वह बड़ा दानवीर होता । इसलिये मुनिको विचार करना चाहिये कि तीर्थकरने जो कुछ रखनेकी आज्ञा दी है, वह केवल तेरे अपने लिये ही है, और वह भी लौकिक दृष्टि छुड़ाकर संयममें लगनेके लिये ही दी है। कोई मुनि गृहस्थके घरसे सुई लाया हो, और उसके खो जानेसे वह उसे वापिस न दे, तो उसे तीन उपवास करने चाहिये-ऐसी ज्ञानी-पुरुषोंकी आज्ञा है। उसका कारण यही है कि वह मुनि उपयोगशून्य रहा है। यदि इतना अधिक बोझा मुनिके सिरपर न रक्खा जाता, तो उसका दूसरी वस्तुओंके भी लानेका मन होता, और वह कुछ समय बाद परिग्रहकी वृद्धि करके मुनिपनेको ही गुमा बैठता । ज्ञानीने इस प्रकारके जो कठिन मार्गका प्ररूपण किया है उसका यही कारण है कि वह जानता है कि यह जीव विश्वासका पात्र नहीं है । कारण कि वह भ्रान्तिवाला है। यदि कुछ छट दी
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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