SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 619
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४३] उपदेश-छाया ५३१ पास कुछ भी तो द्रव्य नहीं है, किन्तु यदि अभी इस बातको कह दूं तो लड़का छोटी उमरका है, इससे उसकी देह छूट जावेगी। स्त्रीने सामने देखा और पूछा कि कुछ कहना चाहते हैं ! पुरुषने कहा 'क्या कहूँ!'स्त्रीने कहा कि जिससे मेरा और बच्चोंका उदर-पोषण हो ऐसा कोई मार्ग बताइये, और कुछ कहिये ! उस समय उस पुरुषने सोच विचारकर कहा कि घरमें जवाहरातके सन्दूकमें कीमती नगकी एक डिबिया है। उसे, जब तुझे बहुत जरूरत पड़े, तो निकालकर मेरे भाईके पास जाकर बिकवा देना, उससे तुझे बहुतसा द्रव्य मिल जायगा । इतना कहकर वह पुरुष काल-धर्मको प्राप्त हुआ। कुछ दिनों बाद बिना पैसेके उदर-पोषणके लिये पीड़ित हुआ वह लड़का, अपने पिताके कहे हुए उस जवाहरातके नगको लेकर अपने काका (पिताके भाई जौहरी) के पास गया, और कहा कि काकाजी मुझे इस नगको बेचना है। उसका जो पेसा आवे उसे मुझे दे दो। उस जौहरी भाईने पूछा, 'इस नगको बेचकर तुझे क्या करना है !' लड़केने उत्तर दिया कि ' उदर भरनेके लिये पैसेकी जरूरत है।' इसपर उस जौहरीने कहा ' यदि सौ-पचास रुपये चाहिये तो तू ले ले; रोज मेरी दुकानपर आ, और खर्च लेता रह । इस समय इस नगको रहने दे।' उस लड़केने उस जौहरी काकाकी बातको कबूल कर लिया, और उस जवाहरातको वापिस ले गया। तत्पश्चात् वह लड़का रोज जौहरीकी दुकानपर जाने लगा, और धीरे धीरे जौहरीके समागमसे हीरा, पन्ना, माणिक, नीलम सबकी परीक्षा करना सीख गया, और उसे उन सबकी कीमत मालूम हो गई। अब उस जौहरीने कहा 'तू जो पहिले अपने जवाहरातको बेचने लाया था उसे ला, उसे अब बेच देंगे।' इसपर लड़केने घरसे अपनी जवाहरातकी डिबिया लाकर देखी तो वह नग नकली मालूम दिया, इससे उसने उसे तुरत ही फेंक दिया। जब उस जौहरीने उसके फेंक देनेका कारण पूछा, तो लड़केने जबाब दिया कि वह तो बिलकुल नकली था, इसलिये फेंक दिया है। देखो, उस जौहरीने यदि उसे पहिले ही नकली बताया होता तो वह लड़का मानता नहीं, परन्तु जिस समय अपने आपको वस्तुकी कीमत मालूम हो गई और नकलीको नकलीरूपसे समझ लिया, उस समय जौहरीको कहना भी पड़ा नहीं कि यह नकली है। इसी तरह अपने आपको सद्गुरुकी परीक्षा हो जानेपर यदि असद्गुरुको असत् जान लिया तो जीव असद्गुरुको छोड़कर सद्गुरुके चरणमें जा पड़ता है। अर्थात् अपने आपमें कीमत करनेकी शक्ति आनी चाहिये। गुरुके पास हर रोज जाकर यह जीव एकेन्द्रिय आदि जीवोंके संबंधमें अनेक प्रकारकी शंकायें और कल्पनायें करके पूंछा करता है, परन्तु किसी दिन भी यह पूंछता नहीं कि एकेन्द्रियसे लगाकर पंचेन्द्रियको जाननेका परमार्थ क्या है ! एकेन्द्रिय आदि जीवोंसंबंधी कल्पनाओंसे कुछ मिथ्यात्वरूपी पंथीका छेदन होता नहीं। एकेन्द्रिय आदि जीवोंका स्वरूप जाननेका हेतु तो दयाका पालन करना है। मात्र प्रश्न करनेके लिये वैसी बातें करनेका कोई फल नहीं । वास्तविकरूपसे तो समकित प्राप्त करना ही उस सबका फल है | इसलिये गुरुके पास जाकर व्यर्थक प्रश्न करनेकी अपेक्षा गुरुको कहना चाहिये कि आज एकेन्द्रिय आदिकी बात आज जान ली हैअब उस बातको आप कलके दिन न करें, किन्तु समकितकी व्यवस्था करें-इस तरह कहे तो किसी दिन निस्तारा हो सकता है। परन्तु रोज रोज एकेन्द्रिय आदिकी माथापच्ची करे तो इस जीवका कल्याण कब होगा !
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy