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________________ स्व० सेठ पुजामाई स्वर्गीय सेठ पूजाभाई हीराचंदका जन्म संवत् १८६० में दहेगामके पास हरखजी नामक ग्राममें हुआ था। छोटी अवस्थामें ही इनके पिताजीका देहान्त हो गया । कुछ समय बाद पूंजाभाई अपने बड़े भाईके साथ अहमदाबाद आकर रहने लगे, और वहीं नौकरी आदि द्वारा अपना जीवन-निर्वाह करने लगे। धीरे धीरे अपनी योग्यतासे उन्होंने अपनी स्वतंत्र दुकान भी कर ली और वे लेन-देनका व्यापार करने लगे । जाभाईके तीन विवाह हुए थे, उनका आखिरी विवाह ३६-३७ वर्षकी अवस्थामें हुआ था । अन्तिम पत्नीसे उन्हें एक पुत्रकी भी उत्सत्ति हुई थी, परन्तु वह अधिक समय जीवित न रह सका । ___ लगभग ३६-३७ वर्षकी अवस्थामें पूंजाभाई श्रीमद् राजचन्द्रके संपर्कमें आये । वे राजचन्द्रजीको गुरुतुल्य मानते थे । राजचन्द्रजीने पूंजाभाईको कुछ पत्र भी लिखे थे । पंजाभाईक जीवनपर राजचन्द्रजीकी असाधारण छाप थी और राजचन्द्रजीके उपदेशोंसे प्रेरित होकर ही उन्होंने 'जिनागम-प्रकाश सभा', 'श्रीराजचन्द्र ज्ञान-भंडार', 'श्रीमद् राजचन्द्र साहित्य मंदिर' आदि संस्थायें स्थापित की थी। जैन-ग्रंथोंके उद्धारके लिये आपने 'श्रीराजचन्द्र जिनागम-संग्रह' नामका ग्रन्थमाला भी निकालनी आरंभ की थी जिसका नाम अब उनकी स्मृति में 'श्रीपूजाभाई जैनग्रन्थमाला' रक्खा गया है और जिसमें आजतक १४ उच्च कोटेके ग्रंथ निकल चुके हैं । राजचन्द्र के वचनामृतका हिन्दुस्तानभरमें प्रचार करनेकी पूंजाभाईकी बहुत समयसे तीव्र अभिलाषा थी, और इसके लिये आपने 'श्रीमद्राजचन्द्र' के हिन्दी-अनुवाद प्रकाशित कराने के लिये पाँच हजार रुपयेकी रकम परमश्रुतप्रभावकमण्डलको प्रदान की थी। पूंजाभाई अत्यन्त व्यवहार-कुशल थे । वे अन्त समयतक देश और समाजसेवाके कार्योंमें खूब रस लेते रहे । पू० महात्मा गांधीजी पूंजाभाईको ‘चिरंजीवी ' कहकर संबोधन करते थे । महात्माजीके आश्रममें पूंजामाईका बड़ा भारी हाथ था । वे आश्रमको अपना निजका ही समझकर उसके लिये सदा शुभ प्रयत्न करनेमें उद्यत रहते थे । महात्मा गांधी ने पूंजाभाईको धर्मपरायण, सत्यपरायण, उदार, पुण्यात्मा, मुमुक्षु, निस्पृह आदि शब्दोंसे संबोधन कर उनका खुब ही गुण-गान किया है । सन् १९३० में, जिस समय महात्मा ने देशसेवाके लिये दांडी-कूच आरंभ किया, उस समय अत्यन्त वृद्ध और अशक्त होनेपर भी पूंजाभाईने महात्माजीके साथ दांडी जानेकी इच्छा प्रकट की थी, तथा, महात्माजीका आश्रममें ही रहनेका आग्रह होनेपर भी, महात्माजीके दांडी पहुँचने के बाद, पूंजाभाई वहाँ गये । पूंजाभाईने ७२ वर्षको अवस्थामें संवत् १९८८ आसोज वदी ८ (२२-१०-३२) शनिवार के दिन देहत्याग किया । उस समय महात्मा गांधीजीने ' आश्रम-समाचार' में पुंजाभाईके विषयमें जो लिखा था, वह अवश्य पठनीय है।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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