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________________ १२२ श्रीमद् राजचन्द्र [७ वचनामृतं १२ ज्ञानियोंद्वारा एकत्र की हुई अद्भुत निधिके उपभोगी बनो । १३ स्त्री जातिमें जितना माया-कपट है उतना भोलापन भी है। १४ पठन करनेकी अपेक्षा मनन करनेकी ओर विशेष लक्ष देना । १५ महापुरुषके आचरण देखनेकी अपेक्षा उनका अंतःकरण देखना यह अधिक उत्तम है। १६ वचनसप्तशतीको पुनः पुनः स्मरणमें रक्खो । १७ महात्मा होना हो तो उपकारबुद्धि रक्खो; सत्पुरुषके समागममें रहो; आहार, विहार आदिमें अलुब्ध और नियमित रहो; सत्शास्त्रका मनन करो; और उँची श्रेणी में लक्ष रक्खो । १८ यदि इनमेंसे एक भी न हो तो समझकर आनंद रखना सीखो । १९ बर्तावमें बालक बनो, सत्यमें युवा बनो, और ज्ञानमें वृद्ध बनो। २० पहिले तो राग करना ही नहीं, यदि करना ही हो तो सत्पुरुषपर करना; इसी तरह पहिले तो द्वेष करना ही नहीं, और यदि करना हो तो कुशीलपर करना । २१ अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र और अनंतवीर्यसे अभिन्न ऐसी आत्माका एक पलभर भी तो विचार करो। २२ जिसने मनको वशमें किया, उसने जगत्को वश किया। २३ इस संसारको क्या करें ! अनंतबार हुई माँको ही आज हम स्त्रीरूपसे भोगते हैं। २४ निग्रंथता धारण करनेसे पहिले पूर्ण विचार करना; इसके कारण दोष लगानेकी अपेक्षा अल्पारंभी होना। २५ समर्थ पुरुष कल्याणका स्वरूप पुकार पुकारकर कह गये हैं, परन्तु वह किसी विरलेको ही यथार्थरूपसे समझमें आया है। २६ स्त्रीके स्वरूपपर होनेवाले मोहको रोकनेके लिये त्वचा विनाके उसके रूपका बारंबार चितवन करना योग्य है। २७ जैसे छाछसे शुद्ध किया हुआ संखिया शरीरको नीरोग करता है वैसे ही कुपात्र भी सत्पुरुषके रखे हुए हाथसे पात्र बन जाता है। २८ जैसे तिरछी आँख करनेसे दो चंद्र दीख पड़ते हैं उसी तरह यद्यपि आत्माका सत्य स्वरूप एक शुद्ध सच्चिदानंदमय है तो भी वह भ्रांतिसे भिन्न ही भासित होता है । २९ यथार्थ वचन ग्रहण करनेमें दंभ नहीं रखना, और ऐसे वचनोंके उपदेश देनेवालेका उपकार भुलाना नहीं। ३० हमने बहुत विचार करके इस मूल तत्त्वकी खोज की है कि-" गुप्त चमत्कार ही सृष्टिके लक्षमें नहीं है।" ३१ बच्चेको रुलाकर भी उसके हाथमेंका संखिया ले लेना। ३२ निर्मल अंतःकरणसे आत्माका विचार करना योग्य है ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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