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________________ २० श्रीमद् राजचन्द्र ५८४ ५८४ पत्रांक पृष्ठ पत्रांक *६५६ अमूर्तस्व आदिकी व्याख्या ५८३ ३० वाँ वर्ष *६५७ केवलदर्शन और ब्रह्म ५८३ | ६६६ मातेश्वरीको ज्वर *६५८ आत्माका मध्यम परिमाण आदि | ६६७ शानीकी दृष्टिका माहात्म्य ६२५ *६५९ वेदान्तकी असंगति | ६६८ परमपदपंथ अथवा वीतरागदर्शन (कविता)६२५-६ | ६६९ मनुष्यभव चिंतामणिके समान ६६० आत्मसिद्धि ५८५-६२२ | ६७० संतोषपूर्वक आत्महितका विचार क्रियाजद और शुष्कज्ञानीका लक्षण ५८५-६ ६७१ मार्गप्राप्तिकी कठिनता ६२७ आत्मार्थीका लक्षण ५८७६७२ जीवोंकी अशरणता ६२७ ठाणांगसूत्रकी चौभंगी ५८८-९ | ६५३ पंचीकरण, दासबोध आदि ग्रंथोंका मनन । सद्गुरुसे बोधकी प्राप्ति ५९०-१ | ६७४ सफलताका मार्ग ६२७ उत्तम सद्गुरुका लक्षण __५९२ | ६७५ शुभाशुभ प्रारब्ध ६२८ स्वरूपस्थितिका स्पष्टीकरण ५९२-३ | ६७६ बाह्यसंयमका उपदेश ६२८ सद्गुरुसे निजस्वरूपकी प्राप्ति ५९४६७७ वैराग्य उपशमकी वृद्धिके लिये पंचीकरण समकित किसे कहते हैं आदिका मनन ६२८ विनयमार्गका उपयोग ५९५ ६७८ शानी पुरुषको नमस्कार ६२८ मता के लक्षण ५९६ ६७९ महानिर्जरा ६२८ आत्मा के लक्षण ५९७-८६८० आरम्भ-परिग्रहका प्रसंग ६२९ षट्पदनाम कथन ५९९६८१ निथको अप्रतिबंध भाव आत्माके अस्तित्वमै शंका-पहिली शंका ५९९ | ६८२ सत्संग ६२९ शंकाका समाधान ६१-००६८३ निर्मलभावकी वृद्धि आत्मा नित्य नहीं-दूसरी शंका ६०२ | ६८४ " सकळ संसारी इन्द्रियरामी" ६२९ शंकाका समाधान ६.२-५ ६८५ " ते माटे उभा कर जोडी" ६३० आत्मा कर्मकी कत्ती नहीं-तीसरी शंका ६०६ / ६८६ श्रुतशान और केवलज्ञान ६३० शंकाका समाधान ६८७ " पढे पार कहाँ पामवो" ६३० -जगत् अथवा कर्मका कत्ती ईश्वर नहीं ६०७-१० | ६८८ शानका फल विरति ६३१ जीव कर्मका भोक्ता नहीं-चौथी शंका ६१०-१६८९ तीन प्रकारका समकित शंकाका समाधान ६११-३ ६९० लेश्या आदिके लक्षण ६३२ कर्मसे मोक्ष नहीं-पाँचवी शंका * ६९० (२) शुद्ध चैतन्य ६३२ शंकाका समाधान ६१३-४ | * ६९. (३) जैनमार्ग ६३२-३ मोक्षका उपाय नहीं-छही शंका * ६९० (४) कर्मव्यवस्था ६३३ शंकाका समाधान ६९१ सत्पुरुष -मोक्षमें ऊँच नीचका भेद नहीं ६९२ आनन्दघनचौबीसी-विवेचन ६३५-४० केवलशान किसे कहते हैं ६१८६९३ कालकी बलिहारी शिष्यको बोधबीजकी प्राप्ति ६१९-२० | ६९४ दुःख किस तरह मिट सकता है ६४१-२ उपसंहार ६२०-२ महात्मा पुरुषका योग मिलना ६४३-५ १६६१ बंधके मुख्य हेतु दिगम्बर और श्वेताम्बर *६६२ "बंधविहाण विमुकं" ६२३ जैनमार्ग-विवेक ६६३ आत्मसिद्विद्यान ६२३-४ मोक्षसिद्धांत ६४७-८ ६६४ शिरच्छत्र पिताजी ६२४ द्रव्यप्रकाश ६४९ ६६५ निर्जरका हेतु शान ६२४ जीवके लक्षण ६५०-१ EEEEEEEEEEEE
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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