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________________ ( ४५४ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वा ६. वेग्युं बे; परंतु हवणां अवसर भलेलो होवाथी तमारे ऊट शत्रुरूप वृक्षोनो नाश करवो.” तेनां श्रावां वचन सांगली धर्मपुत्र युधिष्ठिरे कह्युं. " निश्वे हुँ राज्य माटे पोताना बंधुननो घात करीश नहि. " युधिष्ठिरनां आवां वचन सांजली जीमसेने कयुं. “ अरे ! तमे शत्रुननी उन्नतिने सहन करशो; परंतु हुमनाथी यता पराजवने सहन करनारो नथी. ” युधिष्ठिरे कयुं. " जो के श्रा जीमसेनादि सर्वे युद्ध करवा उत्साहवंत बे, तेम ए शत्रुन पण वध करवा योग्य बे; तो पण प्रथम याने माटे आपले तेने सामादि नीतिनां वचनथी समजाववा जोइए. पी दशाई, बलन, कृष्ण ने बीजा यादवपति - योनी प्राज्ञाथी जय नामनो एक वाचाल दूत तुरत रथमां बेसी हस्तिनापुर प्रत्ये गयो. त्यां ते पोताना स्वामीना बलश्री निर्भय बतोजीष्म ने धृतराष्ट्रादि अनेक पुरुषोश्री जरपुर एवी सन्नामां आवी दुर्योधनने या प्रमाणे कदेवा लाग्यो. " हुं द्वारका नगरीना महाराजा श्री कृष्णनो राजमान्य जय नामनो दूत बुं. हे भूमिपति ! कर्ण सहित तुं एमनो संदेशो म्हारां मुखथी सांजल. हे नरेंश् ! सत्य प्रतिज्ञावाला अने न्यायवंत पांसुपुत्रो के जेन व्दारा बंधुन याय वे, तेन दवणां पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करीने प्रगट थया बे. जेवी ते तेन पोताना कालने निर्गमन करता बता निश्वे सत्यनावने पाम्या वे, तेवी रीतेतुं पांवाने पोतानां राज्यनो नाग प्रापतो बतो वेगथी तेमनो श्राश्रय कर. वली दे राजन् ! पूर्वना राजाननी पेठे दवणां श्रहिं तमारो पल परस्पर एक बीजाना पहना घातना कारणरूप महा युनो आरंभ न थाट. दे जनाधिप ! फक्त वारुणावर्त्तपुर, तिलपुर, इंइप्रस्थ, कासीपुर ने हस्तिनापुर या पांच गामो पांवाने प्रापीने बाकीनुं सघलुं राज्य तुं जोगव.” दूतनां श्रावां वचन सांगली क्रोधथी पोताना होग्ने कसता तथा हाथवमे नेत्रनो रुप - र्श करता एवा डुर्योधने गर्वथी कह्यं के, “हे दूत ! महाद्यूतना पराथी हारी गयेला पोतानां राज्यने ए पांवो शी रीते मेलवी सके ? ए म्हारा बांधवो नश्री; परंतु प्रथमग्रीज महा अपराधने सीधे जीमसेनादि सर्वे म्दारा खरेखरा शत्रुन. ए पांव म्हारी रक्षण करेली जेटली पृथ्वीमां बलात्कारे प्रवेश करे तेटलो तेमनो पृथ्वीनो जाग वे. वाकी हुं म्हारा दायश्री तेमने जरापण प्रापीश तो न हिज. हे जय ! गमे तो पांमुपुत्रो म्हारे विषे देषजाव धरता
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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