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________________ (४३६) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. प्यां. अर्जुने पण परस्पर प्रतिनी वृध्नेि माटे पोतानी धनुष्यकला चित्रांगद नामना विद्याधरने आपी, पठी पोतानी माता अने नाश्योने मलवाने उत्साहवंत श्रयेलो अर्जुन, इंश्नी आझाला वैमानमां बेसीने आकाश मार्गे थइ तुरत पोतानां आश्रमप्रत्ये श्राव्यो, त्यां तेणे माताने तथा पोताना बे म्होटा बंधुनने प्रणाम करीने तया न्हाना वे वंधुनने नेटीने तथा झैपदीने दृष्टिश्री मलीने वहु प्रसन्न करुया.चित्रांगद विद्याधर पण युधिष्ठिरादिकनी पासे अर्जुनना पराक्रमनी वात करीने पठी तेनए रजा आपवायी पोताने स्थाने चाल्यो गयो. हवे को वखते वहु हर्षवाला पांमवो बेग हता एवामां तेमनी वञ्चे आकाशमांश्री एक सुवर्ण कमल पमयु. पदीये तेने पोताना हाश्रमां लश सुंघी अने पठी नीमसेनने कडु के, “ हे नाथ! आवां कमलो मने बहु वहालां , माटे तमे कोइ पण म्होटी नदीधी, सरोवरथी अथवा तो धराथी लावीने मने ऊट श्रापो.” जैपदीनां आवां वचन सनिलीनीमसेन, पंचनवकारनुं स्मरण करतो ठतो वनमां कमलोनी शोध करवा गयो. पाउल धर्म पुत्र युधिष्ठिर, विघ्नकारी मार्बु नेत्र फरकवा लाग्यु. तेथी ते मनमां अरिष्टनी शंका लावी पोताना न्हाना बंधुनने कहेवा लाग्या के, “ अहिं एवो कोश नश्री के, जे नीमन्नाइनो परान्नव करवाने पूर्ण समर्थ थाय !!! उतां आम्हारु, मा नेत्र नीमने विषेज खरेखर घोर अने अति नयंकर अमंगल सूचवे ; तो दे बंधुन ! तमें ऊट नठो अने आपण सौतेनी पाउल जइए." पठी तेन मढ़ा वृकोना गाढ प्रदेशने विपे चारे तरफ शोध करवा लाग्या; परंतु जेम लाग्यदिन मागलने निधि प्राप्त न श्राय तेम तेनने कोई स्थानके नी. मन मख्यो नदि. ठेवट तेन मोदवमे म श्री पृथ्वी नपर पमवा लाग्या पटले तेनए तुरत दिविकानां वचनने याद लावी तेनुं स्मरण करयु. फक्त नाम मात्रना स्मरणी तुरत त्यां आवेली दिविकाए कडं के, “हे पूज्यो ! म्दाम शं कार्य , जे होय ते कहो." युधिष्ठिरे नीमसेन संबंधी वात करी। पटले दतकार्य करनारी तेणे सर्वन पोतानां मस्तक नपर वेसारीने नीमसेन पास लावी वह हर्ष पमाम्या, या वखते नीमसेन पद्म सरोवरना काठ नता दना: तवी ते पग पोताना वंचनने मार्गना विषमपणानी बात को न दर्य पान्यो. N
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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