SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 425
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांमव चरित्र, (४१) शत्रुजय तथा अष्टापद तीर्थ नपर बारवर्ष पर्यंत रह्यो. पगे पोतानी प्रतिज्ञा पूर्ण करीने अनेक विद्याधरोनी साधे पोताना असंख्य वैमानोश्री श्राकाशने । पूरी देतो तो अर्जुन पोताना हस्तिनापुरनगर प्रत्ये आव्यो, स्त्री सहित आवता एवा अर्जुनने सांजली चार पुत्रो सहित अति नत्साहवंत थयेला पांकु राजाए पोताना नगरने विषे अर्जुननो म्होटो नवीन प्रवेशोत्सव कराव्यो, आ वखते बीजा को विद्याधरे पोतानी व्हेनने हरण करवाना समाचार मणिचम विद्याधर पातेथी अर्जुने सांजल्या. ते नपरथी ते, पोताना मित्र मणिचूम विद्याधरने साथे लश् तत्काल शत्रुनी पाउल ज तेने मारी पोतानी व्हेन प्रनावतीने पाठी वाली लाव्यो. जेवी रीते सूर्यनी कांतिये करीने आकाश शोने अने ध्वजावके करीने श्रेष्ठ देवालय शोले तेवीज रीते यशथी पवित्र एवा महात्मा युधिष्ठिरवमे श्रा सर्व विश्व बहु शोन्नतुं हतुं. युधिष्ठिरनी आज्ञाने अनुसरी रहेला नीमसेनादि बीजा चार बंधुन सैन्य सहित सर्व दिशानने जीती अनेक नूपतिनी साये महोत्सव पूर्वक पोताना नगरमा अाव्या. युधिष्ठिरादि पांच पांडवोश्री शेपदीने विषे अनुक्रमे बले करीने शंकरना समान पवित्र पांच पुत्रो श्रया. जेवी रीते नत्तम बंधु, सेवक, पुत्र, मित्र अने पोतानुं अंग (हाथ पग विगेरे ) । श्राझा प्रमाणे चाले , तेवी रीते नीमसेनादि चारे बंधुन पण युधिष्ठिरनी आज्ञा प्रमाणे चालता हता. श्रा नपरश्री प्रसन्न थयेला विद्याधरोना अधिपति मणिचूमे पोतानी विद्याना बलश्री तेमने तुरत इंश्नी सन्नाना समान एक मनोहर सन्ना बनावी आपी. तेमां अत्यंत निर्मल अने आश्चर्यकारी शोन्ना वाला महा मशिना स्तंनो शोन्नी रह्या हता तया दिव्य स्वरूपवाली पुतलीयो जाणे नत्तम रत्नमय अप्सरान होयनी ? एम दीपी रही हती. मणिचूम विद्याधरे जाणे स्नेहथीज होयनी ? एम ते सन्नामां सुवर्णनां सिंहासन उपर बंधुन सहित युधिष्ठिरने वेसारीने पोतानी मैत्री सफल करी. पठी युधिष्ठिरे पोतानां कल्याण माटे नगरमां श्री शांतिनाय प्रनुर्नु नत्तम नवीन मंदिर करावीने तेमां तेज प्रनुनी महा मूल्यवाली अने मणियोए करीने वखाणवा योग्य सुवर्ण मूर्तिनु स्थापन करयु. कारण के, तेज नगरमां श्री शांतिनाथ प्रनुना त्रण कल्याणको थया हता. वली दिग्विजयथी पोताना बंधुनए सं
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy