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________________ (३०४) ऋषिमंमलरत्ति-पूर्वाई. बंधी सर्वे प्रकारना रोगो नदय आवता नथी. वली हुँ, स्त्री पशु पिंकादिथी रहित एवा गाम, नगर, खाण, देवालय, वन अने पर्वतनी गुफा विगेरे स्थानोमां वसु ई. जेथी म्हारो विहार पण तमारा कहेवा प्रमाणे प्राशुक . __ तमे साधुननो जे प्राशुक विहार कह्यो, ते आ में कही बताव्यो तेज ." आवा यावच्चा पुत्र सूरिये आपेला प्रश्नोतरथी शुक गुरु बहु आनंद पाम्यो. व. ली ते शुक गुरुए बघा अंगना मध्यमां रहेला सेलक अध्ययनना प्रसिह प्रश्नो पूज्या, ते पण तेमहासूरिये कणमात्रमा कही बताव्या. पी मोहनीय कर्मन क्षयथी प्रवोध पामेला शुक संन्यासीयेन्नक्तिथी श्री थावच्चा पुत्रने नमस्कार करी वने हाथ जोमीने कडं के,“हे नगवन् ! म्हारा नपर प्रसन्नथइने आप मने संसार समुनेतारवामांवहाण समानजैनधर्मनोनपदेश करो.”पनी यावच्चा पुत्र सूरिये, संसारना नयथी वैराग्य प्रगट करनारी नव तत्त्वमय नत्तम धर्मदेशनाापी अने संसार समुश्मां वहाण समान यति धर्मनुं संक्षेपथी निरुपण करयु. तेने सांजलीने गलि गयो ने मोह जेनो एवा शुक संन्यासीये श्रावच्चा पुत्र गुरुने कडं. "मने नत्तम ज्ञान विना आवा संन्यासि श्रवाना कष्टथी सिहि थ नहि. खरं , जेवा तेवा रसथी सुवर्ण सिदिक्यांथी होय ? अर्थात् नज होय, हे गुरो! हुँ आपनीज पासे जैनव्रत आदरवानी श्चा करुं बु. कारण पूण्यना समूहथी प्राप्त अयेला नत्तम मार्गने कयो पुरुष न अंगीकार करे ? ” गुरुए कह्यु. “हे । तपस्वी ! जेम सुख नपजे तेम कर.” पठी पुण्यात्मा शुक गुरुए पोताना हजार शिष्य सहित ईशान दिशामां जश् गेरुथी रंगेला राता वस्त्रने त्यजी दा शीखा विगेरे कढावी नाखी. पठी शासन देवीये आपेला वेशने धारण करनारा तथा परिवार सहित एवा ते शुक गुरुने श्री श्रावचा पुत्र सूरिये दीक्षा प्रा. पी अने साधुनने योग्य एवो आचार शिखव्यो.शुक मुनि पण दनना अग्रन्नागयी पण सुदम बुध्विमे महा स्मृतिने लीधे दृष्टिवादमय सर्व सिहांत थोमा वखतमां नणी गया. पठी श्रावचा पुत्र सूरिये सद्गुणोनी शुकमुनिने योग्य जाणी तेमने श्राचार्यपदे स्थाप्या. शुकमुनिना पूर्वना हजार शिष्योए पण दी. क्षा लीधी; तेश्री शुक मुनि पोताना पूर्वना परिवार सहित श्री थावच्चा पुत्र मरिनी साये विहार करवा लाग्या, ___दवे नव्यजनोना समृदने प्रबोध करवामां तत्पर एवा शुक मुनि
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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