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________________ (३७५) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वार्ध. ." एवी नद्घोषणा पूर्वक तेने नीचलोक पासे केशथी पकमावी मरी गये. ला कुतरानी पेठे नगरीनी बहार घसमावी काढयो. त्यारवाद " गजसुकुमाल महर्नुि उपसर्गने सहन करवामां आ म्होटुं धैर्य ? " एम निरंतर अनुमोदना करता कृष्णे निर्मल पुण्यरुप बहु धन नपार्जन करयु. कषाय रहित एवा तिलकयशादि मुनीश्वरो पण वीश वर्ष पर्यंत शुइ चारित्र पाली अंते विमलाचल महातीर्थ नपर एक मासनुं अनशन लश केवलज्ञान प्राप्त करीने सिध्विधुना पति श्रया. जेवी रीते महाशय एवा कृष्णना म्होटा बंधुए तथा न्हाना गजसुकुमाल मुनिये महासत्वथी निश्चे पोतानो अर्थ साध्यो तेवी रीते मुनीश्वरोए खरेखर पोतानो अर्थ साधवो जोश्ये. ॥ इति देवकीना पुत्रनी कथा ॥ वंदामि नेमिसीसं, वयदिनगहिएगरायवरपमिमं ॥ सो मिलकयनवसग्गं, पत्तं पणमामि अपवग्गं॥ २५॥ अर्थ-व्रत लेवाने दिवसेज एक रात्री संबंधी पमिमानेधारण करनारा अने सोमिल ब्राह्मणे करेला नपसर्गश्री मोद पामेला श्री नेमिनाथना शिष्य (गजसुकुमाल ) ने हुं वंदना करुं ॥ ॥ जो गेविधान चुन, आया तह कुले विसालंमि ॥ तं देवप्रवचं, गयसुकुमालं नमसामि ॥३०॥ अर्थ-जे ग्रेवयकश्री चवीने यादवोना विशाल कुलमां नुत्पन्न श्रया ठे,त देवकीपुत्र गजमुकुमाल मुनिने हुं नमस्कार करुं . ॥ ॥ ॥ जो वासुदेवपुरन, पसं सिन उकरकरेनत्ति॥ सिग्नेि मिजिनवगणं, तं ढंढणामहारिसिं वंदे ॥३१॥ अर्थ-श्री नेमिनाथ जिनेश्वरे कृप्यनी पासे जेमनी “श्रा कर करे " गम कह ने प्रशंसा करी दती, ने श्रीढंटग महामुनिने हुँ वंदना करूं . ॥३१॥
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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