SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२०४) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. वित रावणे विनीषणने कां. "हे बंधो ! ए बे वनचरोधी तुं केम नय पामे ? में अहि आणेली ए सीता निश्चे मने अंगीकार करशे अने राम लक्ष्मण अहिं आवशे तो तेनने हुँ निश्चे मारी नाखीश. कहे, विद्याधर अने मनुष्यना युट्ने विषे को बलवंत पुरुषे मने क्यारे पण जीत्यो ?” विनीषणे फरी श्री कां. “नाइ! पण ते ज्ञानिनुं वचन तो सत्यज के, स्त्रीना हेतुश्री तमारा कुलनो क्षय रामथी थवानो के. में तमारी नक्तिने लीधे दैवझर्नु वचन मिथ्या करवाने दशरथ नूपने माखो हतो, बतां ते. एम न होय तो पोतानी नगरी प्रत्ये पागेक्यांधीआवे? माटे हुं विज्ञापना करूँ के, “निश्चे नावीप: न्यथा अवार्नु नथी.” एम पोताना मनमां विचारी जानकी पाली रामने अर्पण करो.” पठी रावण वित्नीषणनां वचनने नहिं गणकारतो तत्काल सीताने पु-: प्पक वैमानने विषे बेसारी आकाशमार्गे चाल्यो अने कहेवा लाग्यो के, “हे। नई! कदलीगृहथी मनोहर एवा आ बगीचान, क्रीमा शैलने विषे नाना प्रकारनी मणिमय म्होटी गुफा अने राजहंसादि मिथुनोए सेवन करेलां जलवाली क्रीमा करवानी वाव्यो, सरोवर विगेरे जे आ मुख्य जलाशयो देखाय तेनने विषे हे सुंदरी ! म्हारी साथे निरंतर क्रीमा कर. कारण हुं तने इचित वस्तु आपवाने कल्यवृतरूप बु.” आ प्रमाणे रावणे मधुर वचनश्री सीताने वहु लोनावी; परंतु ते तो पोताना पति श्रीराम नामनो जप करती मौन धारण करीनेज रही. आम रामने विषे स्थीर चित्तवाली सीताने जाणी रावण तेने फरी तेज स्थानके (पोताना नद्यानमां) मूकी पोताने घेर गयो. हवे अहिं विन्नीषण, मुख्य प्रधानोनी साथे एकांतमां विचार करता क. हेवा लाग्यो के, “ हे प्रधानो ! तमे म्हारुं हितकारी वचन सांजलो. पूर्वे आ पणो स्वामी रावण पोताना नुजवलने लीधे सैन्यथी पण वधारे बलवान् ह. तो; परंतु ते हवणां श्री रघुपतिनी प्राण प्रियानां हरगयी बहु अल्प बलवालो श्रइ गयो , मनुष्योने एक पण कामासक्ति अनर्थतुं कारण थाय , तो पठी नरक श्रापनारी परस्त्रीयोमा आसक्ति करवी तेनुं तो शंज कहेवं ? माटे हे मंत्रियो ! तमे रावण पासे जर तेने कहो के, तुं निश्चे श्री रामनी स्त्रीना हरणदी पोताना कुलनो अने पोतानो नाश न कर. कुलनो वय करनारी ए जानकीने त्यजी दा पोताना वंधुपुत्रादि युक्त आ अमित एवी राज्य लक्ष्मी
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy