SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २०५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई, पतिनी श्छा करे खरी? वनवासने अंगीकार करीने पण नत्तम नीति तथा' धर्म साम्राज्यनुं रक्षण करनार वली पोतानी प्रतिज्ञारूप समुनो पार पामनार ए म्हारा प्राणप्रिय क्यां ? अने सर्व कुशीलवंतोमा रेखारूप तथा परस्त्रीनी चाथी नत्पन्न श्रयेला पाप समूहना नाररूप व्हारो पति क्या? जे ' कुलमां पति परस्त्री लंपट होय अने स्त्री दूतीना कार्यने करनारी होय ते कु ल अंते लोकमां धिक्कारपणाने पामे . प्रौढ साम्राज्य संपत्तिथी इंश समान, तथा धनथी कुबेर समान होय तो पण ए दश कंठ (रावण) मने प्राणांतने विपे पण नश्री रुचतो.” आम सीता मंदोदरीने कहे ने एटलामां कामज्वरथी अत्यंत पीमा पामेलो रावण पोते वायुश्री नरामेला रुनी माफक त्यां श्राव्यो अने सुप्रसन्न दृष्टिथी सीताना सामु जोतो तो कहेवा लाग्यो के, “हे वैदेहि ! हुं त्हारो दास बुं अने आ मंदोदरी त्हारी आज्ञाकारी दासी ने. हे नई! म्हारे विषे कृपा करी तुं मरजी प्रमाणे मने नज अने मने अंगीकार करी विद्याधरीयोमां ईश्वरीरूप था.” पली “आ रावण परस्त्रीयोना गमनथी अत्यंत पापी थयो ." एम धारी सीताये अवटुं मुख राखीने तेने कडं. "अरे राक्षसाधम ! तने निश्चे काले कोलीयारूप करेलो देखाय . कारणके, तें कपट करी दशरथना पुत्रनी प्रिया एवी म्हारं हरण करयुं . ते पोतार्नु कुल कलंकित करयुं अने पोतानो आचार पण ऽषित कस्यो ने. हे पापीष्ट ! हवे थोमा वखतमां लदमण त्हारा प्राणोनुं हरण करशे." सीताये आ-प्रमाणे अपमान कस्वा उतां पण रावण तो तेनी प्रार्थना करवा लाग्यो, धिकार ठे कामदेवने के, जे बलवंत पुरुषोना वलने पण हरण करी ले छे. आ वखते जाणे रावणना कुविकल्पथीज पातालमा पेसी जतो होयनी? एम सूर्य अस्त पाम्यो, जेधी सर्व स्थानके अंधकार फेलाइ गयो. पठी रावणे सीताने नय पमामवा माटे घुत्कार शब्द करनारा घुवमनां, फेत्कार शब्द करनारा शीयालनां, चंची फगवाला सर्पनां, सिंह शब्द करनारा सिंहनां, गर्जारा करनारा हाथीनां, अहाटहास करनारा पुष्ट वैतालनांअने वीजा नयंकर रूपो बनाव्यां; परंतु ते सर्व ने जोइ निलय तथा परमे, टी मंत्रनुं ध्यान करती सीता पोतानुं शील राखवामांज तत्पर रही. पीरात्रीने सर्व वृत्तांत जाणीने नीतिमान् एवा- विन्नीपणे त्यां रावणे रोकेली सी
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy