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________________ ( १७५) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. ताए कडं." हे मात ! पोताना पतिनी सेवाथी तो मने वनवास पण अत्यंतसुखकारी थशे.” आ प्रमाणे कहीने नित्य शीलरूप अलंकारने धारण करनारी सीता निर्मल चित्तश्री रामनी पाउल गइ. त्यां कवि नत्प्रेक्षा करे ले के, जेम दातारनी पाउल कीर्ति, धर्मी पुरुषनी पाउल श्रक्ष अने वीर पुरुषनी पाउल जयश्री जती शोने के तेम रामनी पाउल जती सीता शोन्नती हती. " सर्व स्त्रीयोने विषे मुकुट समान आ सीताने धन्य डे के, जे पतिनी नक्तिथी राज्यने त्यजी दा वनने विषे जाय ." आम पुरनी स्त्रीयोनां मुखथी पगले पगले पोतानी प्रशंसा सांजलती ते शीलरूप आनूषणवाली सीता प्रेमपूर्वक पतिनी साथे चाली. हवे अहिं रामनीज साथे रात्री दिवस निवास करनारा अने प्रेमना :रारूप लक्ष्मण पोताना मनमां विचार करवा लाग्या के, "अहो! कैकेयीनी कपट चातुरीने धिक्कार ने के, जेणे राज्यने योग्य एवा श्री रामने वनवास अपाववाने अने पोताना पुत्र नरतने राज्य अपाववाने माटे राजा पासेथी आवो वरदान माग्यो. हुं कणमात्रमा नरतने राज्यथी दूर करी श्री रामने राज्यासने स्था', परंतु एम करवाथी पितानी आझानो नंग शुं न श्राय ? . अर्थात् थाय, अरे ! जनकसुता सहित श्री रामना चरण तो वनमां पण पहो. व्यां अने हवे जो हुं अहिं रहुं तो म्हारा बंधुपणाना प्रेमने धिक्कार ! धिकार !!" आम विचार करी नाश्ना स्नेहथी आकुल श्रयेला लक्ष्मण, पोतानी माता सुमित्रानी, पिता दशरथनी अने कौशल्यानी आझा लश् बाणधी पूर्ण एवा नाथा सहित पोताना अर्णवावर्त्त धनुष्यने हाथमां लश् गुफामांश्री निकलेला केसरीसिंहनी पेठे पोताना नुवनश्री निकली जेम संसारना पारने पामेला नत्तम मुनिने वैराग्यवंत पुरुष मले तेम वहु दूर गयेला रामने मल्या. श्रा वखते जेम विजली अने मेघथी मंदराचल पर्वत शोन्ने तेम लक्ष्मण अने जानकीवमे श्री राम अत्यंत शोन्नवा लाग्या. अदि पाठल जानकी, राम अने लक्ष्मण विनानुं दशरथ राजानुं घर, नेत्र अने नासिका विनानां मुखनी पठे देवावा लान्यं. दशरथ नूपति पण राम, जानकी अने लस्मणना वियोगयी पानाना घग्ने म्मझान तुल्य मानवा लाग्यो. पठी ते वेगवाला घोमा नपर चमी कादास्यादि प्रियान अने मंत्री सामंताने सारे लय,रामती पाउल गयो,
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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