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________________ , क्योंकि पद्य लिखना सहज है; गद्य लिखना उतना सहज नहीं । पद्य में लेखक ' को अनेक छन्दै बन्धनों में बंध कर रचना करनी पड़ती है । इसलिये उसमे यदि कहीं अस्वाभाविकता भी पा जाय, तो संगीत के प्रभाव से साधारण पाठक को वह खटकती नहीं । 'मार्मिक समालोचक ही उसको समझ सकता । है । अतएव पद्यात्मक भाषा की अस्वाभाविकता चाहे एक बार क्षमा भी की जा सके; पर गद्य में ऐसा नहीं हो सकता । गद्य नित्य के व्यवहार की चीज़ ' है। इसलिए लेखनी द्वारा हार्दिक भाव प्रकाशन करते हुए बोलचाल की-सी __ सजीवता उस में आनी चाहिए, तभी वह गद्य भली-भांति हृदयगम होगा । गद्य पढ़ते समय पाठक के सामने लेखक की सजीव मूर्ति खड़ी हो जानी, 'चाहिए-और ऐसा भास होना चाहिए कि लेखक स्वयं अपनी प्रखर वाणी . से बोल रहा है। जैसे किसी परिचित व्यक्ति की आवाज हम, उसके बिना , देखे ही, पहचान लेते हैं, उसी प्रकार सिर्फ भाषा-शैली से ही मालूम हो जाता है कि यह अमुक प्रसिद्ध लेखक की लिखी हुई सजीव भाषा है । यही लेखक । का व्यक्तित्व है। इसलिये जिस लेख में लेखक का व्यक्तित्व न झलकता - हो, वह लेख 'लेख नहीं कहा जा सकता। ' संस्कृत भाषा के मध्य-काल में वाणभट्ट, सुबन्धु और दण्डी-तीन बड़े उद्भट गद्य-लेखक हा गये हैं। इनकी भिन्न-भिन्न शैली देखने से स्पष्ट पता चल जाता है कि, यह अमुक गद्यकार कवि की रचना है । हिन्दी में भी राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द भारतेन्दु, पडित प्रतापनारायण मिश्र, पडित बालकृष्ण भट्ट, बाबू बालमुकुन्द गुप्त, अध्यापक पूर्णसिह, पडित पद्मसिंह शर्मा इत्यादि लेखकों की सजीव भाषाशैली मे उनका व्यक्तित्व बोल रहा है। अंगरेजी कहावत है style is the man himself इसका भी अर्थ ' यही है । प्रत्येक प्रतिभाशाली लेखक अपनी रचना में अपना मस्तिष्क और - हृदय खोलकर रख देता है। उसके 'शब्द मे उसकी आत्मा अदृश्य रूप से व्याप्त रहती है। अपना मन, अपना प्राण, अपना जीवन और सर्वस्व वह . अपनी रचना मे रग्ब देता है । इसी लिये वह स्वयं अपनी रचना के स्वरूप मे अजर-अमर होकर सदैव जीवित रहता है। जब हम उसकी रचना
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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