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________________ [हिन्दी गद्य-निर्माण हैं । पाठवें शिव, काली, भैरव इत्यादि के वस्त्र, निवास, आभूषण आदिक सभी आर्यों से भिन्न है । स्मशान में वास, अस्थि की माला आदि जैसी इन लोगों की वेषभूषा शास्त्रों में लिखी है वह आर्योचित नहीं है। इसी कारण शास्त्रों में शिव का, भृगु और दक्ष प्रादि का विवाद कई स्थल पर लिखा है और रुद्रभाग इसी हेतु यज्ञ के बाहर है । यद्यपि ये पूर्वोक्त युक्तियाँ योरोपीय ___ विद्वानों की हैं; हम लोगों से कोई सम्बन्ध नहीं, किन्तु इस विषय में बाहर वाले क्या कहते हैं, केवल यह दिखलाने को यहाँ लिखी गई हैं। पाश्चिमात्य विद्वानों का मत है कि आर्य लोग (Aryans) जब - मध्य एशिया ( Central Asia ) में थे तभी से वे लोग विष्णु का 'नाम जानते हैं । जारीस्ट्रियन (Zorostrian) ग्रन्थ जो ईरानी ओर आर्य शाखाओं के भिन्न होने के पूर्व के लिखे हैं उनमें भी विष्णु का वर्णन है। वेदों के प्रारम्भकाल से पुराणों के समय तक तो विष्णु महिमा आर्यग्रन्यों में पूर्ण है । वरच तन्त्र और अाधुनिक भाषा अन्यों में उसीभॉति एकछत्र विष्णु महिमा का राज्य है। पण्डितवर वाबू राजेन्द्रलाल मित्र ने वैष्णवता के काल को पांच भाग मे विभक्त किया है । यथा (१) वेदों के आदि समय की वैष्णवता (२) ब्राझस के समय की वैष्णवता, (३) पाणिनि के और इतिहासों के समय को वैष्णवता (४) पुराणों के समय की वैष्णवता, (५) आधुनिक समय की वैष्णवता । वेदों के आदि समय से विष्णु की ईश्वरता कही गई है । ऋग्वेद सहिता मे विष्णु की बहुत सी स्तुति है। विष्णु को किसी विशेष स्थान का नायक या किसी विशेष तत्व वा कर्म का स्वामी नहीं कहा है, वरंच सर्वेश्वर की भाति स्तुति किया है । यथा विष्णु पृथ्वी के सातों तहों पर फैला है। विष्णु ने जगत् को अपने तीन पैर के भीतर किया। जगत् उसी के रज में लिपटा है । विष्णु के कमो को देखो जो कि इन्द्र का सखा है । ऋषियो।' विष्णु के ऊँचे पद को देखो, जो एक ऑख की भॉति अाकाश में स्थिर है। 'पण्डितो ! स्तुति गाकर विष्णु के ऊँचे पद को खोजो, इत्यादि । ब्राह्मणों ने इन्हीं मन्त्रों का बड़ा विस्तार किया है और अब तक यश, होम, श्राद्ध आदि :
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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