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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण नालों के वसीले से वह वितस्ता से मिली हुई है । कनारों पर वाग हैं । बीचबीच में टापू, उनमे अगूर, वेदमजनू इत्यादि । सुन्दर पेड़ों के अन्दर लोगों के मकान । तख्तों पर बोरे खबुजे की खेतियों मुर्गाबियाँ कलोले करती हुई कहीं नाव कमलों के बीच से होकर निकलती है और कहीं अगूर वेदमजनू की कुलों । के नीचे ही नीचे चली जाती हैं जुमे के रोज क्या गरीव और क्या अमीर नाव : में बैठकर सैर के लिए डल में जाते हैं । इन्हीं टापुओं में चाय रोटी खाते हैं। नाच-गाने का भी शगल रखते है । यह कैफियत देखने की है लिखने की कदापि लेखनी का सामर्थ्य नहीं। अगले लोग जो कश्मीर की तारीफ में यह लिख गये हैं कि बूढा भी वहाँ जाने से जवान हो जाता है सो इतना तो वहाँ अवश्य देखने में आया कि मन उसका जवानों का सा हो जाता है । जैसे रेगिस्तान में जेठ-वैसाख के झुलसे हुए, मनुष्य को यदि कहीं वसंत ऋतु की हवा लग जावे तो देखो उसका मन कैसा बदल जावेगा और तिसमें कश्मीर की हवा के आगे तो और जगह का वसत ऋतु भी नर्क ऋतु है । जो लोग : निर्जन एकान्त रम्य और सुहावने स्थान चाहते हैं उनके लिए कश्मीर से बढ़ कर दूसरी जगह कोई भी नहीं है। शकुन्तला नाटक [ लेखक-राजा लक्ष्मणसिंह] अंक ५ . स्थान--- राज भवन (राजा भासन पर बैठा है, माढव्य पास खड़ा है ) माढव्य-(कान बगा कर ) मित्र, संगीतशाला की अोर कान लगाओ, देखो - कैसा मधुर अलाप सुनाई देता है । मेरे जान तो रानी हंसपदिका गाने का अभ्यास कर रही है। दुग्यन्त-अरे चुप रह सुनने दे। . [नेपथ्य में राग होता]
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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