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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण और हमारा अन्तःकरण भी इस बात की गवाही देता है कि ईश्वर अन्याय कभी नहीं करेगा; जो जैसा करेगा वैमा ही उससे उसका बदला पावेगा।" तव तीसरा पंडित आगे बढ़ा और उसने जो, जवान खोली कि "महाराजा ? परमेश्वर के यहाँ हम लोगों को वैसा ही वदला मिलेगा जैसा कि हम लोग काम करते हैं । इसमे कुछ भी संदेह नहीं, बार बहुत यथार्थ . फरमाते हैं । परमेश्वर अन्याय कभी नहीं करेगा, पर ये इतने प्रायश्चित्त और यज्ञ और जप, तप, तीर्थयात्रा किस लिये बनाए गए हैं ? वे इसीलिये हैं कि जिसमें परमेश्वर हम लोगों का अपराध क्षमा करें और वैकुण्ठ में अपने पास रहने को ठौर देवे ।" राजा ने कहा "देवता जी, कल तक तो मैं आप की सव वात मान सकता था लेकिन अब तो मुझे इन कामों में भी ऐसा कोई दिखलाई नहीं देता जिसके करने से यह पापी मनुष्य पवित्र पुण्यात्मा हो जावे। वह कौन सा जप, तप, तीर्थयात्रा, हाम, यज्ञ और प्रायश्चित्त है जिसके , करने से हृदय शुद्ध हो और अभिमान न पा जावे ? आदमी को फुमला लेना तो सहज है पर उस घट-घट के अन्तर्यामी को क्योंकर फुमलावे । रव मनुष्य का मन ही पाप से भरा हुआ है तो फिर उससे पुण्यकर्म कोई कहाँ से वन आवे पहले आप उस स्वप्न को सुनिए जो मैने रात को देखा है तब फिर पीछे वह उपाय बतलाइए जिससे पापी मनुष्य ईश्वर के कोप से छुटकारा पाता है।" निदान राजा ने जो कुछ स्वप्न रात में देखा था सब ज्यों का त्यों उस पंडित को कह सुनाया । पडित जी तो सुनते ही अवाक हो गए, उन्होंने सिर झुका लिया । राजा ने निराश हो कर चाहा कि तुषानल मे जल मरे पर एक परदेशी आदमी-सा जो उन पडितों के साथ बिना बुलाए घुस आया था सोचता : विचारता उठकर खडा हुआ और घीरे मे यों निवेदन करने लगा "महाराज, हम लोगों का कर्त्ता ऐसा दोनबंधु कृपासिंधु है कि अपने मिलने की राह श्राप ही वतला देता है, आप निराश ने हूजिए पर उस राह को हूँ दिए । अाप इन . पडितों के कहने में न आइए पर उसी से उस राह को पाने की सच्चे जी से मदद मॉगिए ।' हे पाठक जनो ! क्या तुम भी भोज की तरह दूदते हो और भगवान् से उसके मिलने की प्रार्थना करते हो ? भगवान् तुम्हें शीघ्र ऐसी बुद्धि
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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