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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण है उस प्रकार उसने मुंह पर घु घट-सा डाल लिया है नहीं तो गजा की ऑखें कब उस पर ठहर सकती थीं, इस चूं घट पर भी वे मारे चकाचौंधके झपकी चली जाती थीं। राजा उसे देखते ही कॉप उठा अोर खड़खड़ातीसी जवान से बोला कि हे महाराज ? आप कौन हैं और मेरे पास किस प्रयोजन से आए हैं ? उस पुरुष ने बादल की गरज के समान गमीर उत्तर दिया कि मैं सत्य हूँ, अधों की आंखें खोलता हूँ, मैं उनके धागे से धोखे की टट्टी हटाता हूँ, मै मृगतृष्णा के भटके हुओं का भ्रम मिटाता हूँ और सपने के भूले हुओं को नींद से जगाता हूँ । हे भोज ? अगर कुछ हिम्मत रखता है तो हमारे माय या और हमारे तेज के प्रभाव से मनुष्यों के मन के मन्दिरों का भेद ले, इस समय हम तेरे ही मन को जाँच रहे हैं। राजा के जी पर एक अजब दहेशत-सी छा गई । नीची निगाह करके वह गर्दन खुजलाने लगा । सत्य वोला भोज ? तू डरता है, तुझे अपने ' मन का हाल जानने में भी भय लगता है ११ भोज ने कहा-नहीं, इस बात से तो नहीं डरता क्योंकि जिसने अपने 'तई नहीं जाना उसने फिर क्या जाना १ सिवाय इसके मैं तो आप चाहता हूँ कि कोई मेरे मन की थाह लेवे और अच्छी तरह से जाँचे । मारे व्रत और उपवासों के मैंने अपना फूल- ' सा शरीर कॉटा वनाया, ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देते-देते सारा खजाना खाली कर डाला, कोई तीर्थ वाकी न रखा, कोई नदी या तालाव नहाने से न छोड़ा, ऐसा कोई आदमी नहीं कि जिसकी निगाह में मैं पवित्र । पुण्यात्मा न ठहरूं । सत्य बोला, "ठीक" पर भोज, यह तो वतला कि तू . ईश्वर की निगाह में क्या है ? क्या हवा में विना धूप त्रसरेणु कभी दिखलाई देते हैं ? पर सूय्य की किरण पड़ते ही कैसे अनगिनत चमकने लग जाते हैं ? क्या कपड़े से छाने हुए मैले पानी मे किसी को कीड़े मालूम पड़ते हैं ? पर जब खुर्दबीन शीशे को लगा देखो तो एक-एक बूँद में हजारों ही जीव सूझने लग जाते हैं। जो तू उस बात के जानने से जिसे अवश्य जानना चाहिए डरता नहीं तो था मेरे साथ श्रा, मैं तेरी आँखें खोलू गा" निदान सत्य यह कह राजा को उस बड़े मन्दिर के ऊचे दर्वाजे पर..
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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