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________________ . ( ४१ ) 'पाया जाता है जहाँ लेखक को चनती भाषा का निर्वाह करना पड़ा है। इस प्रकार इनकी शैली परिष्कृत, सतर्क और परिमार्जित हो गई है। विषय के अनुकूल भाषा बनाने मे शिवपूजन सहाय की लेखनी विशेष कुशल है। यही कारण है कि इनकी भाषा में चमत्कार से साथ साथ आर्षण अधिक मात्रा में मौजूद है । भाषा की विशुद्धता और उत्कृष्टता के • साथ साथ अलंकारिता की ओर भी इनका ध्यान है। इसीलिए इनकी साधारण भाषा भी गद्य-कान्य का आनन्द देती है। उपमा, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा इत्यादि अलंकारों का निर्वाह स्वाभाविक रूप से. इनके गद्य में यथास्थान पाया जाता है । इससे इनकी भाषा में लालित्य और सौंदर्य आ गया है । कहीं-कहीं दीर्घ समासान्त पदावली की मनोहर छटा भी दिखाई देती है। ऐसे स्थलों पर कल्पना और भावना मिश्रित रूप दृष्टिगोचर होता है । इनकी शैली में कहीं-कहीं भाषा धाराप्रवाह चलती है; और कहीं-कहीं पद्यात्मक तुकान्त भी दृष्टिगोचर होता है । वाक्य छोटे-छोटे, गम्भीर और संयतरूप मे - प्रयुक्त हुए हैं। रोचकता, व्यावहारिकता, और चलती भाषा का रूप भी इनकी रचनाओं में पाया जाता है। बिहार प्रान्त के श्राप सर्वश्रेष्ठ हिन्दी लेखक हैं। - पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' . बाबू शिवपूजन सहाय की रचना को भॉति उग्र जी की रचनाओं पर सामयिकता का अच्छा प्रभाव पडा है । उग्र जी ने सामयिक कहानियों की रचना करके अपनी गद्य-शैली को एक विशेषता प्रदान की है। कथन'प्रणाली का ऐसा शक्तिशाली स्वरूप इनकी रचनाओं में पाया जाता है । * जो अन्यत्र बहुत कम दृष्टिगोचर होता है। भावावेश ऑधी की भाँति उठता है और वह रचना को प्रोजस्वी तथा शक्तिशाली बना देता है। कहीं-कहीं इनके शब्द और वाक्य मानों आग उगलते हुये चलते हैं । उग्र जी की स्वाभाविक लेखन-शैली में संस्कृत तत्समता, समासान्त पदावली और अव्यवहारिक शन्दों का प्रयोग नहीं दिखाई देता । भाव-व्यंजना की स्वाभाविकता
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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