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________________ वर बना रहा सिद्ध हुई, था , जो भाषा में उर्दू पन का प्रभाव वरावर बना रहा । और यह बात उपन्यास और । कहानियों की रचना में उनके लिए शोभादायक ही सिद्ध हुई, क्योंकि उर्दू के प्रभाव से उनकी हिन्दी-भाषा-शैली भी विशेष मुहाविरेदार बन पड़ी, जो उपन्यास और कहानियों के लिए विशेष अनुकूल हुई। इस दृष्टि से प्रेमचन्द जी की भाषा इतनी व्यापक, व्यावहारिक और आकर्षक है कि पाठकों का ध्यान उस ओर एकाएक आकर्षित हो जाता है। वास्तविकता के चित्रण में प्रेमचन्द, जी अपना सानी नहीं रखते। ग्रामीण के चरित्र-चित्रण में लेखक अपनी वास्तविक शैली और प्रतिभा का चमत्कार दिखलाता है । मुहावरे तो प्रेमचन्द जी की भाषा की जान है। किस मौके पर क्या वात किस तरह कहना चाहिए, समय की प्रगति किस ओर है इन विचारों के अनुकूल प्रेम. चन्द जी अपनी भाषा का निर्माण करते हैं । इनकी रचनाओं में जहाँ हमें भाषा का चलता हुआ रूप मिलता है । वहाँ भावुकता भी कहीं कहीं स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। ऐसे अवसर पर भाषा संयत और भावुक हो गई है। समय-समय पर अवसर के अनुकूल देहाती तथा प्रान्तीय भाषा का भी प्रयोग प्रेमचन्द जी ने किया है । प्रायः छोटे-छोटे वाक्यों की रचना में लेखक अपने सुलझे हुए विचार प्रगट करता है । मानव स्वभाव के वास्तविक चित्रण में प्रेमचन्द जी की भाषा ने बड़ा सहयोग दिया है। हिन्दी में उदू शब्द और मुहाविरों का प्रयोग किस भॉति होना चाहिए इसका वास्तविक परिचय प्रमचन्द जी की भाषा से होता है ! जयशंकर प्रसाद नाटक-रचना का प्रारम्भ भारतेन्दु वाबू हरिश्चन्द्र के समय से ही हो जाता है; और उस काल में अनेक नाटक लिखे तथा अनूदित किये गये, किन्तु उच्च विचारों, भावावेश तथा चरित्र-चित्रण की दृष्टि से वे महत्वपूर्ण नहीं हैं । बाबू जयशंकर प्रसाद के नाटकों द्वाग नाटक साहित्य में एक नवीन जागति हुई हैं । 'स्कन्दगुप्त', 'चन्द्रगुप्त', अजातशत्रु', 'एक घूट', 'कामना' इनके उच्च कोटि के नाटक हैं । इन नाटकों का उद्देश्य भारतीय संस्कृति का
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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