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________________ । ३४ ) शुक्ल जी के पूर्व अालोचना-पद्धति का कोई निर्धारित प नहीं था। आलोचनाये तो काफी संख्या में लिखी गई थीं किन्तु भावे, भाषा और विचार की दृष्टि से उनमें उत्कृष्टता कम थी। शुक्ल जी ने आलोचना की एक ऐसी शैली प्रचलित की जो व्यवस्थित, है और इसका प्रचार दिन प्रति दिन बढ़ रहा है । आपने साहित्य-शास्त्र का पौर्वात्य और पाश्चात्य ढङ्ग पर बहुत सुन्दर अनुशीलन किया था; और इस दृष्टि से हिन्दी संसार पर आपका प्रभाव बहुत दिनों तक बना रहेगा । पुरुषोत्तमदास टंडन - टडन जी देश के उन्नायकों में जहाँ अपना एक विशेष स्थान रखते हूँ वहाँ हिन्दी के उन्नायकों में भी अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । हिन्दीसाहित्य सम्मेलन ऐमी सार्वजनिक संस्था का संस्थापन और संचालन टंडनजी की अनवरत हिन्दी-सेवा का ज्वलन्त उदाहरण है। राष्ट्रीय महासभा के अन्तर्गत हिन्दी का प्रवेश कराने में भी टंडन जी का मुख्य हाथ रहा है। राष्ट्रहित के भिन्न-भिन्न कार्यों में लगातार व्यस्त रहने के कारण श्राप हिन्दीलेखन की अोर विशेष रूप से तो अग्रसर नहीं हो सके; किन्तु स्वर्गीय पं० वालकृष्ण भट्ट और महामना मालवीय जी के सत्संग से हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य के प्रेम का अंकुर श्रापके हृदय मे युवावस्था में उदय हुअा, वह वरावर पल्लवित होता गया और सन् १९०७ में आप "अभ्युदय" के सम्पादक के रूप में हिन्दी-संसार के सामने आये। तब से आज तक वरावर श्राप हिन्दी भाषा, हिन्दी साहित्य और नागरी लिपि के प्रचार और उन्नति मे प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते रहते हैं । आपने कई छोटी-मोटी पुस्तकों के अलावा कुछ स्फुट निबंध भी लिखे हैं । आपकी भाषा बहुत परिमाजित होती है । संस्कृत के प्रचलित तत्सम और तद्भव शब्दों के प्रयोग के साथ ही साथ अावश्यकतानुसार आप उर्दू शन्दों को भी ग्रहण , कर लेते हैं । टंडन जी की लेखनशैली अावेशयुक्त और वक्तृत्व के समान धाराप्रवाह होती है । आप एक ही वाक्य को दोहरा कर उसे और अधिक
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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