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________________ ( २८ ) रचना में कुछ ऐसी विशेषता पाई जाती है जो अन्य लेखकों में नहीं है। यद्यपि इनके निवन्धों का पूर्ण प्रचार अभी नहीं हो पाया है; किन्तु उनसे इनकी प्रतिभा का चमत्कार प्रकट होता है। मिश्रजी की भाषा में यह विशेपता है कि उसमें क्रमागत भावों का चित्रण सुन्दर रूप में हुआ है । भोज । और गम्भीरता उसका प्रधान गुण है । यद्यपि भाषा-शैली मे सस्कृत-शब्द. विन्यास की अधिकता है, किन्तु प्रवाह और माधुर्य मे विशृङ्खलता नहीं . दिखाई देती । भावना का आवेश इनकी भाषा को चमत्कृत करता है । पढ़ते - समय ऐसा ज्ञात होने लगता है कि लेखक के हृदय में भावनाओं का स्रोत उमड़ पड़ा है और उससे मार्मिकता का स्पष्ट चित्रण होता जाता है । यदि करुण रस से पूर्ण भावना का उदय हुअा है तो भाषा और विचारों मे करुण रस का प्रवाह प्रवाहित हो उठता है । मिश्र जी की भाषा-शैलो का प्रधान गुण नाटकत्व का है। कहीं-कहीं 'वक्तृत्वमय शैली का भी प्रादुर्भाव हुअा है। जिससे यह अत्यन्त प्रभावशालिनी हो गई है । भाषा-शैली में वक्तृत्व और । नाटकत्व के गुण श्रा जाने से वह आकर्षक और अधिक चिकर हो गई। है। इस प्रकार मिश्र जी की रचना शैली मे भोज, प्रमाद, उत्कृष्टता और प्रौढ़ता का अच्छा समावेश है। . पूर्णसिह मिश्रजी की भाँति सरदार पूर्णसिंह जी भी हिन्दी-क्षेत्र में विशेष परिचित नहीं है, क्योंकि इनकी रचना बहुत थोड़ी मिलती है । सुना गया है कि इनकी बहुत-सी रचना अभी अप्रकाशित पड़ी है। परन्तु इतके जो दो-चार निवन्ध मिलते हैं, उन्हीं से इनकी प्रतिभा का चमत्कार प्रदर्शित हो जाता है आजकन एक नई शैली हिन्दी में उपस्थित है। एक वाक्य लिखकर उसके जोड़-तोड़ के अनेक वाक्यों की उपस्थित कर दिया जाता है; जिससे भाषा अधिक प्रभावशालिनी हो जाती है । इस शैली की परिपाटी अध्यापक पूर्णसिंह ने प्रथम उपस्थित की । इन्होंने भावना-प्रधान गद्य की रचना की है; और . उससे एक प्रकार के रहस्य का उद्घाटन किया है। विलक्षणता तो इनके गद्य .
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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