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________________ .. .. ( २५ ) . . ' ये उर्दू के बहुत अच्छे लेखक थे और उर्दू के कई पत्रों का योग्यता-पूर्वक सम्पादन किया था, पर पीछे से हिन्दी लिखने की अोर इनकी प्रवृत्ति हुई और कालाकॉकर के प्रसिद्ध देशभक्त और हिन्दी-हितैषी राजा रामपालसिंह के .. 'हिन्दुस्तान' पत्र में ये सहायक-संपादक बन कर पाये। वहाँ पंडित प्रताप नारायण जी मिश्र के उत्साहदान और सहयोगिता से ये हिन्दी के बहुत अच्छे लेखक बन गये। बाद को इन्होंने 'भारत मित्र के द्वारा हिन्दी की अच्छी सेवा की । गुप्त जी उच्चकोटि के सेम्पादक और प्रगति के साथ चलने वाले व्यक्ति थे । पहले से उर्दू के अच्छे लेखक रहने के कारण इन्होंने भाषा को रुचिकर बनाना भली-भांति जान लिया था । मुहाविरों को सुन्दर रूप से प्रयोग करने में यह पटु थे । समाचारपत्र में बोल-चाल की भाषा के व्यवहार से छोटे छोटे वाक्यों द्वारा भाव-निदर्शन करने में ये सिद्धहस्त थे । इनके वाक्य छोटे-छोटे पर अर्थपूर्ण, भाषा सरल और मुहाविरेदार होती थी। इनकी गद्य-लेखन शैली व्यावहारिक और चलती हुई है। कहीं भी ऊबड़-खाबड़ नहीं प्रकट होती। प्रवाह का समावेश भली-भाँति हुअा है । यह अपने वाक्य को दृढ़ बनाने के लिए स्थान-स्थान पर बात दुहरा दिया करते थे। कथन प्रणाली का ढंग वार्तालाप का-सा है । गुप्त जी हास्यविनोद के सुन्दर लेखक थे; और बड़े मार्के का चुभता हुआ विनोद लिखते थे। उस समय 'भारतमित्र' में 'शिवशभु का चिट्ठा' के अंतर्गत प्रकाशित होने वाले लेख इसके प्रमाण हैं । इसके सिवा गुप्त जी अालोचक भी अच्छे थे । भाषा पर इनका पूर्ण अधिकार तो था ही, इसीलिए इनकी श्रालोचना बड़ी प्रभावशालिनी' और चमत्कारपूर्ण होती थी । उसमें रूखेपन का श्रोभाल नहीं मिलता, । हिन्दी-उर्दू-मिश्रित भाषाशैली इन अालोचनाओं की प्रधानता थी। आपने कई पुस्तकों की रचना की है, किन्तु अधिक समय अन्वबारनवीसी मे व्यतीत करने के कारण स्थायी साहित्य का कोई अन्य नहीं लिख सके। हिन्दी के लेखकों पर इनकी सरल और बोधगम्य भाषा शैली का काफी प्रभाव पड़ा है।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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