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________________ ___२३२ ... [हिन्दी-गच-निर्माण करते हुये अपूर्व कवि-कौशल प्रकट किया है : जन्म सिन्धु पुनि वन्धु विष, दिन मलीन सकलंक । सिय मुख-समता पाव किमि, चन्द्र वापुरो रंक ॥ इत्यादि वहुत से काव्यालंकारों के साथ भिन्न भिन्न कवियों ने नियों के अङ्गप्रत्यङ्ग का सौन्दर्य वर्णन किया है । सारांश यह है कि कवियों ने श्री सौन्दर्य को बहुत अधिक महत्व दिया है। कुछ लोगों की राय तो यह है कि सम्पूर्ण काव्य-साहित्य से यदि स्त्री का भीतरी बाहरी सौन्दर्य निकाल दिया जाय, वो कवित्व कुछ रह ही न जायगा ! ___ यह पुरुषों का दृष्टिकोण हुआ; क्योंकि कई दार्शनिकों का ऐसा भी ख्याल है कि सौन्दर्य और विशेषकर वाह्य सौन्दर्य का अनुभव जितना पुरुष कर सकते हैं उतना स्त्रियाँ नहीं कर सकती । स्त्रियाँ सौन्दर्य पर उतना मुग्ध नहीं होती, जितना गुणों पर । सम्पूर्ण सृष्टि में स्त्रिया आन्तरिक सौंदर्य का ही विशेष अनुभव करती है । इसीलिए स्त्रियों के द्वारा पुरुषों के सौन्दर्य का वर्णन प्रायः नही सुना जाता । उनके गुणों का; यानी आन्तरिक सौन्दर्य । का, वर्णन ही स्त्रियों अधिकतर किया करती हैं । इसी प्रकार सृष्टि के प्रत्येक पदार्थं की उपयोगिता उनको पहले दिखाई देती है, उसका बाह्य सौंदर्य पीछे। यदि वह वात सत्य है, तो कहना पड़ेगा कि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा भी बाह्य सौन्दर्य ही विशेष नहीं है, बल्कि अान्तरिक सौन्दर्य या दिन । गुण भी अधिक मात्रा में हैं और पुरुषों की अपेक्षा वे ईश्वर के विशेष निकट हैं। इसीलिए अन्तवाह्य सौन्दर्य की पूर्ण अधिष्ठात्री स्त्री-रूप देवी 'लक्ष्मी' और 'सरस्वती' ही मानी गई हैं । कायारूपी स्त्री की बैरागी कवि लोग चाहे जितनी निन्दा करें, परन्तु ब्रह्म के सौंदर्य का अनुभव हम माया के बिना नहीं कर सकते हैं । अस्तु । कवि और दार्शनिकों ने स्त्री को सौन्दर्य की अधिष्ठात्री देवी माना है; इसका एक कारण यह है कि वह भावुकतामयी है और मानवहृदय के सौन्दर्य का उसमे सम्पूर्ण विकास हुश्रा है-प्रेम, करुणा, दया, स्नेह, सौहार्द, उपकार, कृतज्ञता, साहस, त्याग सेवा, श्रद्धा, भक्ति, इत्यादि O .
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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