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________________ अवतार] २१६ ' जब तक सेवक हाँ! हाँ !' कहकर चिल्ला उठता है, तब तक दाहिने , हाथ में नगी तलवार और बायें हाथ में लच्छेदार केशों वाला मुण्ड लिये हुए रानी का धड़, बिलास मंदिर के संगमर्मरी फर्श को सती-रक्त मे सींचकर पवित्र करता हुश्रा, धड़ाम से धरती पर गिर पड़ा। . . बेचारे भय चकित सेवक ने यह "दृढ़ श्राशा और अटल विश्वास का चिन्ह कॉपते हुए हाथों से ले जाकर चूड़ावतजी को दे दिया। चूड़ावतजी प्रेम से पागल हो उठे । वे अपूर्व आनन्द मे मस्त होकर ऐसे फूल गये कि, कवच की कड़ियाँ धड़ाधड़ कड़क उठी। सुगन्धों से सींचे हुए मुलायम वालों के गुच्छों को दो हिस्से में चीरकर चूड़ावतजी ने, उस सौभाग्य-सिंदूर से भरे हुए सुन्दर शीश को गले में लटका लिया। मालूम हुआ मानों स्वयं भगवान रुद्रदेव भीषण भेष धारण कर शत्रु का नाश करने जा रहे हैं । सब को भ्रम हो उठा कि, गले में काले नाग लिपट रहे हैं, या लम्बी लम्बी सटकार लटे हैं। अयारियों पर से सुन्दरियों ने भर भर अञ्जली फूलों की वर्षा की। मानो स्वर्ग को मानिनी अप्सराओं ने पुष्पिवृष्टि की। बाजे गाजे के, शब्दों के साथ घहराता हुअा अाकाश फाड़ने-वाला, एक गम्भीर स्वर चारों ओर से गूंज उठा "धन्य मुण्डमाल !!!" . अवतार [लेखक-पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र'] - "हे प्रभो ?" अत्याचार-पीड़ितों ने अपने पीड़ित प्राणों को केवल कठ में एकत्र कर पुकारा-"तुम कहाँ हो जरा पृथ्वी के इस कोने की अोर तो अपन करुण-कटाक्ष फेरो। जरा हम दुखियों और गरीवों पर तो एक बार निगाह करो! जरा देखो तो ये चन्द उन्मच मतवाले तुम्हारी समता मे कैसी
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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