SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ --- -- - - - - -- - - - - - - अन्तःपुर का आरम्भ.] ' २०७ -दूसरी बाई की-कैंची की गांठ छाती के पास बची हुई थी, बाकी दो लरक रही थीं। चारों में खुर लगे थे। उस पूर्वज का शरीर रोएँ की पनी तह से ढका हुआ या सिर पर बिखरे बड़े-बड़े बाल । गहबर लट पड़ी हुई डाढ़ी। सहज गौर वर्ण, धूप, वर्षा, जाड़े से पंककर तँबिया गया था। शरीर पर जगह जगह घ8थे-पेड़ पर चढ़ने के, पहाड़ पर चढ़ने के रेंगने के, फिसलने के : "क्योंकि पुरातन नर की जीवनचर्या के ये ही समय-यापन थे । और एक बड़ा भारी घट्ठा दाहिने हाथ की मुट्ठी पर था-प्रत्यंचा खींचने का। अरने भैंसे को सींग का बना, पुरसा भर ऊँचा धनुष; उसी की कड़ी मोटी ताँत की प्रत्यंचा को खींचते खींचते, केवल यह घट्ठा हो नहीं पड़ गया था, प्रत्युत् बाँ हे मी . लम्बी हो गई थीं। वे घुटने चूमा चाहती थीं। उस पुरुष के पीछे भाद्या नारी । उसकी चीतल की चित्र उत्तरीय यी और पटि में एक बल्कल । एक सुन्दरी फूली लता की टहनी सिर से लिपटी । यी, और बिखरी हुई लटों में उलझी थी। कानों में छोटे छोटे सींग के टुकड़े . भूल रहे थे, हाथों में बूढ़े हाथियों के पीले दांतों के टुकड़े पड़े हुए थे। हाँ, वे ही-चूड़ियों के पूर्वज । र वह अपने पुरुष के कन्धे का सहारा लिये उसी पर अपने दोनों हाथ रक्खे और ठुड्ढी गड़ाये खड़ी थी। । पुरुष के अंग फड़क रहे थे । उसने स्त्री से कहा-"देखो १ अाज फिर आया-कल घायल कर चका हूँ, तिस पर भी।" "तब अाज चलो, निपटा डालें।" "हाँ, अभी चला।" . पुरुष अपने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगा, और स्त्रो ने अपना मठारे . हुए चकमक पत्यर के फलवाला, भाला सम्हाला १ वह उसके बगल में हो । ) "दीवार के सहारे खड़ा किया था। भाला लेकर उसने पूछा-- "अभी चला ? मैं भी तो चलूंगी।" "नहीं तुम क्या करोगी ? क्या तुम्हें मेरी शक्ति पर सन्देह है ?" "छिः । परन्तु मैं यहाँ अकेली क्या करूँगी १५
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy