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________________ ( २० ) विभाग में इन्स्पेक्टर के पद पर प्रतिष्ठित थे । हिन्दी के आप उन प्राचीन हितैषियों में थे जो देवनागरी के प्रचार और प्रसार में सदैव तत्पर रहे । हिन्दी उद् के सम्बन्ध में जो झगडा उस समय उपस्थित था, राजा साहब ने उसको सुलझाने में योग दिया । उन दिनों शिक्षा-विभाग में उदू' और नागरी में से कौन भाषा और लिपि जनता में प्रचलित की जाय, यह प्रश्न उपस्थित था। __ राजा साहव ने दोनों में समझौते के तौर पर नागरी लिपि और मिश्रित हिन्दी का पक्ष शिक्षा-विभाग में उठाया। राजा साहब ने स्वय शिक्षा विभाग के लिए हिन्दी पुस्तकें लिखीं और अपने मित्रों से लिखवाई। आपका यह उद्योग था कि लिपि देवनागरी हो और भापा 'मिली-जुली रोजमर्रा की बोलचाल की हो । राजा साहब की रचनाओं से मालूम होता है कि उन्होंने गद्य-निर्माण में दो प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया। पहले तो वे भारतेन्दु जी के समान ही विशुद्ध हिन्दी लिखते थे । 'राजा भोज का सपना, "दमयन्ती की कथा" इत्यादि उनके निवन्ध विशुद्ध हिन्दी के वढिया नमूने हैं, परन्तु पीछे से उर्दू हिन्दी को मिलाने और एक सर्वसाधारण, बोलचाल की भाषा चलाने के उद्देश्य से उन्होंने अपना विचार बदल दिया । सन् १८७५ के छपे हुए अपने गुटके की भूमिका में राजा साहव स्वय लिखते हैं-"पंडित लोग सोचते हैं कि जितने असली सस्कृत शन्द (चाहे वह , समझ में आवें चाहे नहीं) लिखे जावें, उतनी ही उनकी नामवरी का सबब है और इसी तरह मौलवी लोग फारसी और अरवी शब्दों के लिए सोचते हैं | गरज पुल बनाने के बदले दोनों खन्दक को गहरा और चौड़ा करते चले जाते हैं।" इससे मालूम होता है कि राजा साहव हिन्दी और उर्दू दोनों को मिला देने के पक्षपाती थे । जैसे कि अाजकल महात्मा गाधी का प्रयत्न है. और हमारी अँगरेजी सरकार का भी इन प्रान्तों में आजकल ऐसा ही विचार है; क्योंकि इन प्रान्तों के स्कूलों में "कामन लैंग्वेज' के नाम से सरकारी शिक्षाविभाग ने ऐसी ही रीडरें जारी की हैं, और सरकार की ओर से खुली हुई "हिन्दुस्तानी एकेडमी' भी ऐसे ही कुछ विचार रखती है । यद्यपि राजा साहब ने उस समय हिन्दी और उर्दू को मिलाने का सद्भावपूर्ण प्रयत्न
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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