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________________ समाधान ] 'मेरी वहाँ कोई जरूरत न थी। 'चलो चेहरा खिला हुया है । खूब सम्मान हुआ होगा।' 'हाँ, सम्मान तो जैसी अाशा न थी वैसा हुा ।" । 'खुश बहुत हो ?' __ 'इसीसे कि आज मुझे हमेशा के लिए सबक मिल गया। मैं दीपक और जलने के लिए बना हूँ। श्राज मैं इस तत्व को भूल गया था। ईश्वर ने . मुझे ज्यादा बहकने न दिया। मेरी. यह कुटिया ही मेरे लिए स्वर्ग है। मैं - अाज यह तत्व पा गया, कि साहित्य-सेवा पूरी तपस्या है।' . - - - समाधान (लेखक-बाबू जयशङ्कर 'प्रसाद'), परिवर्तित दृश्य (बिहार के समीप चतुष्पथ । एक अोर ब्राह्मण लोग बलि का उपकरण लिए; दसरी मोर भिक्ष और बौद्ध जनता उत्तेजित । दयनायक का प्रवेश ।) दण्डनायक-नागरिकगण ! यह समय अन्तर्विद्रोह का नहीं है । देखते नहीं , हो कि, साम्राज्य बिना कर्णधार का पोत होकर डगमगा रहा है .। और तुम लोग तुद्र बातों के लिए परस्पर झगड़ते हो! ब्राह्मण --इन्हीं बौद्धों ने गुप्त शत्रु का काम किया है, कई वार के विताड़ित हूण, इन्हीं लोगों की सहायता से पुनः आए हैं इनके धर्म का और इनका नाश करके, तब हम लोग विश्राम करेंगे! . श्रमण-ठीक है । गङ्गा, यमुना और सरयू के तट पर के गड़े हुए यशयूप, सम्मियों की छाती मे ठुकी हुई कीलों से अभी भी खटकते हैं हम लोग निस्सहाय ये, क्या करते १ विधर्मी विदेशी की शरण में भी यदि प्राण बच जाय और धर्म की रक्षा हो । राष्ट्र और समाज मनुष्यों के द्वारा बनते हैं, उन्हीं के सुख के लिए जिस राष्ट्र में
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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