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________________ • साहित्योपासक ] ' प्रवीण जी राजा साहब के विशाल भवन के सामने पहुंचे, तो दीये अल चुके थे । अमीरों और रईसों की मोटरें खड़ी थी। - · वरदी-पोश'दरवान द्वार पर खड़े थे। एक सज्जन मेहमानों का स्वागत कर रहे थे । 'प्रवीण जी को देखकर वह ज़रा झिझके । फिर उन्हें । सिर से पांव तक देखकर बोले-अापके पास नवेद है १. - प्रवीण की जेब में नवेद था । पर इस भेद-भाव पर उन्हें क्रोध श्रा , गया। उन्हीं से क्यों नवेद मॉगा जाय । औरों से भी क्यों न पूछा जाय । बोले-जी नहीं, मेरे पास नवेद नहीं है। अगर आप अन्य महाशयों से ' नवेद मांगते हो, तो मैं भी दिखा सकता हूँ। वरना मैं इस भेद को अपने लिए अपमान की बात समझता हूँ । श्राप राजा साहब से कह दीजियेगा, .. प्रवीण जी आए थे और द्वार से लौट गए ।, 'नहीं-नहीं, महाशय, अन्दर चलिए । मुझे आपसे परिचय न था । ने अंदबी, माफ कीजिए । आप ही जैसे महानुभावों से तो महफिल की शोभा है। ईश्वर ने आपको वह वाणी प्रदान की है कि क्या कहना।' इस व्यक्ति ने प्रवीण को कभी न देखा था। लेकिन जो कुछ उसने कहा, वह हरेक साहित्यसेवी के विषय में कह सकते हैं, और हमें विश्वास है कि कोई साहित्यसेवी इस दाद की उपेक्षा नहीं कर सकता। ' प्रवीण अन्दर पहुंचे.'तो देखा, बारहदरी के सामने विस्तृत और सुसजित प्रांगण में बिजली के कुमकुमे अपना प्रकाश फैला रहे हैं । मध्य में एक हौज है, हौज फौवारे में संगमरमर की परी, परी के सिर पर, फौवारा की फुहार रंगीन कुमकुमों से रंजित होकर ऐसी मालूम होती थीं, मानों इन्द्र धनुष पिघल कर ऊपर से बरस रहा है । हौज के चारों ओर मेजें लगी हुई थीं। मेजों पर मुफेद मेज पोश ऊपर सुन्दर गुलदस्ते । " प्रवीण को देखकर ही राजा साहब ने स्वागत किया-आइये, आइये, अबकी 'हंस' में आपका लेख देखकर दिल फड़क उठा। मैं तो चकित हो गया। मालूम ही न था, कि इस नगर में श्राप जैसे रन भी छिपे हुए हैं। . --marry - . ----
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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