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________________ ( १५ ) विन्ध्याचल के बीच, मनुस्मृति के अनुसार, मध्यदेश अथवा आर्यावर्त के भिन्न भिन्न प्रान्तों में प्रचलित थे। पश्चिम और पूर्व की ओर इस प्रान्त की सीमा क्रमशः पंजाब के पूर्वीय और विहार के पश्चिमीय भाग से मिली हुई थी। इस मध्य देश में, भिन्न-भिन्न प्रान्तों मे, भिन्न-भिन्न प्रकार के, गद्य का प्रयोग बोलचाल और साधारण व्यवहार मे होता था। अर्थात् उस समय का हिन्दी 'गद्य, वहाँ के प्रान्तों की भिन्न-भिन्न बोलियों के रूप में था। इसके बाद वर्तमान खड़ी बोली का सूत्रपात नवीं या दसवीं शतान्दी के लगभग हुआ। वर्तमान समय मे जो खड़ी बोली. हिन्दी भाषा के गद्य और पद्य में, व्यवहत होती है, उसके बनाने में मुसल्मान साधुओं और साहित्यकारों ने भारम्भिक काल में, अच्छा भाग लिया। उस समय के मुसल्मान साहित्यकारों में पहला नाम सन् ८७० ई० में अन्दुल्लाह एराकी का मिलता है, जिसने बालूर के राजा के लिए कुरानशरीफ का 'हिन्दवी' में तर्जुमा किया। इसके बाद अमीर खुसरो, अशरफ, सादी, शाहवला अल्लाह, शेख, मुहम्मद वावा, रहीम, जायसी, कवीर और बहुत से मुसल्मान साधु, कवि और साहित्यकार, मुसल्मानी राज्य के साथ ही साथ, भारत के प्रत्येक प्रान्त में फैले हुए थे और अधिकाश उनमें से एकेश्वरवादी, और राजनीतिक झझटों से अलग, सच्चे ईश्वरभक्त साधु थे, हिन्दू साहित्यकारों, कवियों और साधुओं से इनकी घनिष्ट मैत्री, हेल-मेल और आत्मीय प्रम था। वर्तमान की भांति इनमे हिंदू मुसल्मानों का मजहबी या राजनैतिक किसी प्रकार का भी मतभेद नहीं था। राम और रहीम दोनों को वे एक ही समझते थे। दोनों एक साथ बैठकर एक ही भाषा में परस्पर विचार-विनिमय और जनता को उपदेश किया करते थे । इनमे प्रायः सभी मुसल्मान कवि, माधु और साहित्यकार "हिन्दवी" या हिन्दी भाषा का ही व्यवहार करते थे। "उडू" शब्द भी उस समय इन मुसल्मान साहित्यकारों के सामने नहीं आया था। हाँ, अरवी और फारसी के । विद्वान् इनमें अवश्य थे। अपनी "हिन्दवी" मे. मा--सरल प्रचलित अरबी फारसी के शब्द, जो जनता सहज में समझ लेती थी, ये लोग व्यवहृत करते थे । दक्षिण के प्राचीन हिन्दू साधु ज्ञानश्वर, एकनाथ, तुकाराम, रामदास
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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