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________________ मजदूरी और प्रेम.] १३६ 'न करें और जिनके द्वारा हमें महामणि प्राप्त हुए हैं उनका उपकार न मानें तथा ऐसे राम की, जिनके नाम पर हमारे लिए पूर्व जो प्रेम, प्रतिष्ठा एवं मनोविनोद की नींव थी, अथच हमारे लिए गिरी दशा में भी जो सच्चे अहंकार का कारण और जिससे श्रागे के लिए सब प्रकार के सुधार को अाशा भूल जाय ? अथवा किसी के बहकाने से रामनाम की प्रतिष्ठा करना छोड़ दे तो कैसी कृतज्ञता, मूर्खता एवं अात्महिंसकता है। पाठक ! यदि सब भांति की भलाई और बड़ाई चाहो तो, सदा सब ठौर सब दशा में राम का ध्यान रखो, राम को भजो, राम के चरित्र पढ़ो, सुनो, रामकी लीला देखो दिखाश्रो, राम का अनुकरण करो । सब इसी में तुम्हारे लिये सब कुछ है । इस 'रकार' और 'मकार' का वर्णन तो कोई त्रिकाल मे कही नहीं सकता। - कोटि जन्म गावे तो भी पार न पावेंगे। __ मजदूरी और प्रेम - ( लेखक-अध्यापक पूर्णसिंह जी) ___ हल चलाने वाले का, जीवन .हल चलाने और भेड़ चराने वाले प्रायः स्वभाव से ही साधु होते हैं । हल चलाने वाले अपने शरीर का हवन किया करते हैं खेत उनकी हवनशाला है। उनके हवनकुंड की किरणे चावल के लम्बे और सफेद दानों के रूप में निकलती हैं । गेहूँ के लाख-लाख दाने इस अग्नि की चिनगारियों की डालियाँसी हैं । मैं जव 'कभी अनार के फूल और फल देखता हूँ तब मुझे बाग के . माली का रुधिर याद आ जाता है। उसकी मेहनत के कण जमीन में गिर कर उगे हैं, और हवा तथा प्रकाश की सहायता से वे मीठे फलों के रूप में नजर आ रहे हैं । किसान मुझे अन्न में, फूल मे, फल मे आहुति हुअा-सा दिखाई देता है। कहते हैं, ब्रह्माहुति से जगत् पैदा हुआ है अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके ईश्वरी प्रेम का केन्द्र है उसका
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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