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________________ . रामलीला ] - किन्तु हमारा वक्तव्य यह है कि वह प्रवाह भगवती भागीरथी की तरह बढ़ने लगे, तो क्या सामर्थ्य है कि कोई उसे रोक सके ? क्योंकि वह प्रवाह, कृत्रिम प्रवाह नहीं है, भगवती वसुन्धरा के हृदय का प्रवाह है, जिसे हम स्वाभाविक प्रवाह भी कह सकते हैं। । । जिस दीपक को हम निर्वाणप्राय देखते हैं,निःसन्देह उसकी शोचनीय "दशा है और उससे अन्धकार निवृत्ति की अाशा करना दुराशा मात्र है, परंतु ___ यदि हमारी उसमें ममता हो और वह फिर हमारे स्नेह से भर दिया जाय तो । स्मरण रहे कि वह दीप वही प्रदीप है जो पहले समय मे हमारे स्नेह, ममता और भक्ति भाव का प्रदीप था । उसमें ब्रह्माड को भस्मीभूत कर देने की शक्ति है । वह वही , ज्योति है जिसका प्रकाश सूर्य मे विद्यमान है एवं जिसका दूसरा नाम अग्निदेव है और उपनिषद् जिसके लिये पुकार रहे हैं . "तस्य भाषा सर्वमिदं विभाति" ॥ , वह प्रदीप भगवान् रामचन्द्र के पवित्र नाम के अतिरिक्त और कुछ, : नहीं है यद्यपि राम नाम की क्षुद्र प्रदीप के साथ तुलना करना अनुचित है, परंतु यह नाम का दोष नहीं है, हमारे तुद्र भाग्य की तुद्रता का दोष है कि उनका भक्ति-भाव अब हम में ऐसा ही रह गया है। कभी हम लोग भी सुख से दिन बिता रहे थे, कभी हम भी भूमंडल ' पर विद्वान् और वीर शन्द से पुकारे जाते थे, कभी हमारी कीर्ति भी दिगदिगंतव्यापिनी थी, कभी हमारे जय-जय कार से भी श्राकाश गूंजता था और कभी बड़े-बड़े सम्राट हमारे कृपाकटाक्ष की भी प्रत्याशा करते थे-इस बात का स्मरण करना भी अब हमारे लिये अशुभचिंतक हो रहा है। पर - कोई माने या न माने, यहाँ पर खुले शब्दों में यह कहे बिना हमारी आत्मा * नहीं मानती कि अवश्य हम एक दिन इस सुख के अधिकारी थे। हम लोगों । में भी एक दिन स्वदेशभक्त उत्पन्न होते थे, इसमें सौभाग्य और सौहार्द का अभाव न था, गुरु-भक्ति और पितृ भक्ति हमारा नित्यकर्म था, शिष्ट का पालन और दुष्ट-दमन ही हमारा कर्तव्य था। अधिक क्या कहें-कभी हम भी ऐसे ये कि जगत् का लोभ हमें अपने कर्तव्य से नहीं हटा सकता था। अब वह
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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