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________________ १२६ [हिन्दी-गद्य-निर्माण श्रवण, विचार और अभ्यास की जरूरत होती है । यह नहीं कि तेरह-तरह मात्राओं के दोहे के लक्षण जान लेते ही काता और ले दौड़े ! अन्तिम तोमरे दरजे के मनुष्य के लिए क्षेमेन्द्र ने लिखा है यस्तु प्रकृत्याश्मसमान एव कष्टेन वा व्याकरणेन नष्टः । तर्केणदग्धोवनिलधूमिनावा प्यविद्धकर्णः सुकविप्रबन्धेः ।।२२।। न तस्य वक्त त्वसमुद्भवः स्याच्छिक्षा विलेषैरपि सुप्रयुक्तैः। नगर्दभोगायतिशिक्षितोऽपि सन्दशितं पश्यति नार्कमन्धः ।।२३।। जिसका हृदय स्वभाव ही से पत्थर के समान है, जो जन्मरोगी हैं, " व्याकरण “धोखते-घोखते” जिसकी बुद्धि जड़ हो गई है, घट-पट और अग्नि भूम आदि से सम्बन्ध रखनेवाला फक्किाएँ रटते-रटते जिसकी मानसिक सरसता दग्ध सी हो गई है, महाकवियों की सुन्दर कविताओं का श्रमण भी जिसके कानों को अच्छा नहीं लगता उसे श्राप चाहे जितनी शिक्षा दें और चाहे जितना अभ्यास करावे वह कभी कवि नहीं हा सकता। सिखाने से भी क्या गधा भैरवी अलाप सकता है ? अथवा दिखाने से भी क्या अन्धा मनुष्य सूर्य विम्ब देख सकता है ? ____ अब आप ही कहिए कि जिन्होंने कवित्व-प्राप्ति-विषयक कुछ भी शिक्षा । नहीं पाई, जिन्होंने उस सम्बन्ध, मे वर्ष दो वर्ष भी अभ्यास नहीं किया और जिन्होंने इस बात का भी पता नहीं लगाया कि उनमें कवित्व-शक्ति का वीज है या नहीं वे यदि वलात् कवि बन बैठे और दुनिया पर अपना आतङ्क जमाने के लिए कविता विषयक बड़े-बड़े लेक्चर झाड़े तो उनके कवित्व की प्रशंसा ' की जानी चाहिये या उनके साहस, उनके धाष्टर्य और उनके अविवेक की! अच्छा, कविता कहते किसे हैं । इस प्रश्न का उत्तर बहुत टेढ़ा है। इसलिए कि इस विषय मे, प्राचार्यों और विशेषज्ञों में, मतभेद है। कविता कुछ मार्थक शब्दों का समुदाय है अथवा कहना चाहिये कि वह ऐसे ही शब्द-समुदाय के भीतर रहनेवाली एक वस्तु-विशेष है। कोई तो कहते हैं कि ये शब्द या वाक्य यदि सरस है तभी कविता की कक्षा के भीतर पा सकते
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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