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________________ आजकल के छायावादी कवि और कविता] , जनता ने प्रकाशन के आडम्बरों से रहित इन सत्कवियों के काव्यों को यहाँ . तक अपनाया कि समय, उनको नष्ट ने कर सका, धर्मान्ध आततायियों से उनका कुछ न बिगड़ सका, जलप्लावन और भूकम्प आदि का जोर भी उनका नाश न कर सका । सहृदय सज्जनों और कविता के पारखियों ने उन्हें आत्मसात् करके उन्हें अपने कण्ठ और अपने हृदय में स्थान देकर अमर कर दिया। सड़े गले कागज और फटे पुराने ताड़पत्र को देखकर काव्यरसिकों ने उन्हें फेंका नहीं। उन पुरातन पात्रों में कुछ ऐसा मोहनमन्त्र थाउनमे कुछ ऐसी अद्भुत शक्ति थी-जिसने उन्हें मोह लिया । वह शक्तिवही मन्त्रौषधि उन काव्यों के जीवित रहने का कारण हुई। सो, छायावादी कवि अपनी कृति को चाहे जितने रम्य रूप मे प्रकाशित करे-उसके उपकरणों को वह चाहे जितना मनोमोहक बनावें-यदि उसकी कविता में वह शक्ति नहीं जो सत्कवियों की कविता में होता है तो उसके श्राडम्बर-जाल में सरस हृदय श्रोताशुक कदापि फंसने के नहीं। प्राचीन कवियों को जाने दीजिए। आधुनिक कवियों में भी ऐसे कई सत्कवि इस समय विद्यमान हैं जिनकी कविता-पुस्तकों के थोड़ी ही समय में, अनेक संस्करण निकल चुके हैं। उनकी कवितायें मदरसों, स्कूलों और कालजों के छात्रों तक के कण्ठहार हो रही हैं । इन कवियों ने अपनी कविताएँ सजाकर प्रकाशित करने की चेष्टा नहीं की और किसी किसी ने की भी है तो बहुत ही थोड़ी। फिर भी इनकी कविता का जो इतना आदर हुआ है उसका एकमात्र कारण है उसकी सरसता उसका प्रसाद-गुण, उसकी वर्णाभरणता और उसकी चमत्कारिणी रचना । अतएव सत्कवियों के लिए आडम्बर को जरूरत नहीं किमिवहि मधुराणां मण्डन नाकृतीनाम् । गूढार्थ-विहारी या छायावादी कवियों की कहीं यह धारणा तो नहीं कि हमारी कविता में कविलभ्य गुण तो है ही नहीं, लाओ ऊपरी अाडम्बरों ही से पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट करें । परन्तु यह सन्देह निराधार-सा जान पड़ता है, क्योंकि इन महाशयों में से कविता-कान्तार के किसी-किसी कण्ठीरव ने बड़े
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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