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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण मानो पश्चिम उसका सब ऋण चुका चला है । आज वहीं की विद्या और ' विज्ञान से भारत की आँखें खुली हैं । हमारे देश के लोग अब तक अवश्य ही अविद्या के अन्धकार में सो रहे थे । उनके अनेक अटपटे आक्षेपों का। प्रतिवाद कौन करता ? अब उनके द्वारा ये भी जगे और उनके सम्मति स्वर्ण को निज विचार की कसौटी पर चले हैं । आशा है कि कुछ दिनों में, बहुतेरे .. विवादग्रस्त विषय उभय पक्ष से सिद्धान्त रूप से स्वीकृत हो जायेंगें । यद्यपि अनेक भारत सन्तान आज उन्हीं के सुर में सुर मिलाये वही राग अलाप रहे हैं। किन्तु वे क्या करें जब कि उन्हीं की टेकनी के सहारे वे चल सकते हैं। तो भी सदा यही दिन न रहेगा । सदैव हमारे भाई औरों ही की पकाई खिचड़ी खाकर न सराहेगें। वरञ्च वे भी शीघ्र ही पूर्वी और , पश्चिमी उभय विज्ञान चक्षु को समान भाव से खोलेंगे, आलस्य छोड़कर अपने अमूल्य रत्नों को टटोलेंगे और खरे-खोटे की परख कर स्वयं अपने सच्चे सिद्धान्त स्थिर कर लेंगे। अभी कल की बात है कि हमारे देश के गौरव स्वरूप ब्राह्मण कुलतिलक पण्डिवर वाल गंगाधर तिलक ने अपने विलक्षण विद्यावैभव और प्रतिभा से श्राव्यों के आदि निवासस्थान को ही वैदिक साहित्य की प्राचीनता -जिसे पश्चिमीय विद्वान् चार सहस वर्ष से अधिक नहीं मानते थे, उससे आठ सहस्र वर्ष सिद्ध कर दिया है । योंही अन्य अनेक ऐसे अमूल्य सिद्धांत ... वेदों से आविष्कृत और प्रकाशित किये, जिसे सुन वे चौकन्ने हो गये। कई . बार आगे भी भारत पर अज्ञानान्धकार और विपरीत विचार का अधिकार हो चुका है । किन्तु फिर यथार्थ ज्ञानसूर्योदय ने उसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। जब तक यह दिन न आ जाय, हमे धैर्य पूर्वक अपने सहस्रों वर्षों , के चले आते सच्चे सिद्धान्त और विश्वास से टसकना न चाहिये । श्राप लोग क्षमा करें कि मैं प्रकृत विषय से वहक कर व्यर्थ बहुत दूर जा पहुंचा। निदान देववाणी क्रमशः व्याकरण और साहित्य के विविध अंगप्रत्यंगों से युक्त हो इतनी उन्नत अवस्था को पहुंची कि आज भी संसार की . भापाएँ अनेक अंशों मे उसके आगे सिर झुका रही हैं । प्रारम्भ मे यही यहाँ
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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