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________________ ३९ जिनराजरि-कृति-कुसुमांजलि काल उभय पडिकमणउ सारी, रातइ भूमि संथारी हो ल०॥४॥ साथइ सद्गुरु पंचाचारी, श्रावक पर उपगारी हो ल० । गायन जिनवर ना सुविचारो, गुण गावै विसतारी हो ल०॥५॥ गाम जीयइ जिणहर जाणीजइ, भावइ ते प्रणमीजइ हो ल । प्राशक दान सुपात्रइंदीजइ, नर भव लाहउ लीजइ हो ल०१६॥ यात्र करउ इम अवसर पामी, तउ साचा शिवगामी हो ल०। 'राजसमुद्र' प्रभु अंतरजामी, श्री रिसहेसर सामी हो ल०॥७॥ श्री शत्रुजय यात्रा मनोरथ गीत सखी आणु हे नालेर रारूंख के, आणु सदाफ्ल ऊजलो। हूंपूछ हो सखिजोइस सुजाण के, आपइ मुहूरत अति भलो।१ सखि मो मन हे ऊमाहो एह के, जाणू विमलगिरि जाइयइ भेटीजइ हो सखि नाभि मल्हार के,......... (अपूर्ण) __ आलोयणा गर्भित । श्री शत्रु जय स्तवनम् कर जोड़ी इम वीनव, मोरा सामी हो साँभलि अरदास । बात कहीजइ तेहनइ, जे पूरइ हो प्रभु मन नी आस ।क०॥१॥ 'विमलाचल' सिर सेहरउ, मरुदेवा हो नंदन अवधारि । मुकी मननो आमलउ, आलोहो पातक संभारि ॥क०॥२॥ जनम मरण कीधा घणा, ते कहताँ हो किम आवइ पार। जे वेदन पामी तिहाँ, ते जाणइ हो तू हिज करतार ॥०॥३॥ आरिज देसइ अवतरी, मइ लाघउ हो सद्गुरु मंजोग । छांडया मइ अछता छता, कायायइ हो पिणविहि संजोग।का। जाण अजाण पणइ करो, मई लोधउ हो संयम नो भार। ..
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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