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________________ जिनराजसूरि कृति - कुसुमांजलि बिमल गिरि ( श्री ऋषभदेव) वधामणा गीतम् राग - गुंड मल्हार भाव धरि धन्य दिन आज सफलउ गिरणु, ३६ आज भई सजनी आणद पायो । हरख धरि नजरि भरि 'विमलगिरि' निरख करि, कनक मणि रजत मोतिने वधाय ॥ १॥ ኢ पग पनि उमंग धरि पंथ नितु पूछतां, धन्न दोउ चलण जिण चलत आयउ । आज धन दोह जागी सुकृत की दशा, आज धन जोह जिण सुजस गायउ || २ || दूर दूरगति टरी यात्र विधि सुकरी, i पुण्य भंडार पोतड़ भरायउ । वदत मूनि 'राज' मनरंग सुरगिरि शिखरि ऋषभ जिरणचंद मुरतरु कहायउ || ३ || श्री विमलाचल यात्रा मनोरथ गीत राग - धन्यासी बरग बिछोहउ परिहरो, ध्यान धरइ निस दीस रे । पिण 'विमलाचल' वेगलउ, किम पूरवु जगदीश रे ॥१॥ सुरगु सुर मो मन करहला, काई सचीतउ आज़ रे । जउ मुझवंखत लिखित अछ, तर भेटिमु जिनराज रे ॥२॥ माम जपे जगगुरु तणर, होया म छंडे आस रे । 1 अवसरि वंछित परिसु, करिजे लोल विलास रे ॥३॥ साथ संवल दे करी, सइगू मेलि सुसाथ रे )
SR No.010756
Book TitleJinrajsuri Krut Kusumanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1961
Total Pages335
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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